महिलाओं में क्यों होती है पुरुषों से बेहतर सुनने की शक्ति? वैज्ञानिकों ने खोजे कारण
क्या आपने कभी महसूस किया है कि महिलाएं अक्सर छोटी-छोटी आवाजों या बातों को तुरंत सुन और समझ लेती हैं, जबकि पुरुष कई बार अनसुना कर जाते हैं? यह सिर्फ सामाजिक धारणा नहीं, बल्कि अब यह वैज्ञानिक तथ्यों से भी सिद्ध हो चुका है। हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में यह सामने आया है कि महिलाओं की सुनने की क्षमता पुरुषों के मुकाबले औसतन दो डेसीबेल अधिक होती है। इस अध्ययन में हिस्सा लेने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके पीछे जैविक, हार्मोनल और पर्यावरणीय कारक जिम्मेदार हो सकते हैं।
अध्ययन की शुरुआत और उद्देश्य
इस विषय पर अध्ययन फ्रांस के सेंटर फॉर बायोडायवर्सिटी एंड एनवायर्नमेंटल रिसर्च और ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ के वैज्ञानिकों के संयुक्त नेतृत्व में किया गया। मुख्य अनुसंधानकर्ताओं में डॉ. पैट्रिसिया बालरेस्क और प्रोफेसर टुरी किंग शामिल रहीं। शोध का उद्देश्य यह समझना था कि क्या सुनने की शक्ति केवल उम्र या बीमारी से प्रभावित होती है, या फिर लिंग, स्थान और जीवनशैली जैसे कारकों का भी इसमें हाथ होता है।
कैसे किया गया अध्ययन?
शोधकर्ताओं ने 13 देशों — जिनमें फ्रांस, इंग्लैंड, इक्वाडोर, गेबॉन, दक्षिण अफ्रीका और उज्बेकिस्तान शामिल थे — के 450 लोगों की सुनने की क्षमता का परीक्षण किया। इसमें जंगलों में रहने वाले समुदाय, पहाड़ों पर बसे लोग, और शहरी क्षेत्रों के निवासी शामिल थे।
शोध में ‘टीईओएई’ (Transient Evoked Otoacoustic Emissions) नामक विशेष परीक्षण विधि का इस्तेमाल किया गया, जिसमें यह जांचा गया कि कान के अंदर मौजूद कॉक्लिया (Cochlea) — जो आवाजों को मस्तिष्क तक पहुंचाता है — अलग-अलग प्रकार की ध्वनियों पर कैसी प्रतिक्रिया देता है।
महिलाओं की बेहतर सुनने की क्षमता के कारण
अध्ययन के अनुसार, महिलाओं की सुनने की क्षमता पुरुषों की तुलना में औसतन दो डेसिबल बेहतर पाई गई। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अंतर संभवतः निम्नलिखित कारणों से होता है:
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हार्मोनल परिवर्तन: महिलाओं में गर्भावस्था, मासिक धर्म और रजोनिवृत्ति जैसी स्थितियों के कारण हार्मोनल बदलाव होते रहते हैं, जो श्रवण प्रणाली पर प्रभाव डाल सकते हैं।
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कान की आंतरिक बनावट: स्त्रियों के कान की संरचना में मौजूद मामूली जैविक अंतर उनकी श्रवण शक्ति को प्रभावित कर सकते हैं।
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मस्तिष्क की प्रोसेसिंग क्षमता: महिलाओं का मस्तिष्क श्रवण संकेतों को तेजी से और बेहतर ढंग से प्रोसेस करता है, जिससे वे न केवल बेहतर सुन पाती हैं, बल्कि उन्हें समझने में भी अधिक सक्षम होती हैं।
पर्यावरण और स्थान का भी असर
अध्ययन में यह भी पाया गया कि सुनने की क्षमता केवल लिंग पर निर्भर नहीं करती, बल्कि व्यक्ति कहां रहता है, यह भी बहुत मायने रखता है। उदाहरण के लिए:
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शहरी लोग: लगातार ट्रैफिक, मशीनों और भीड़भाड़ वाले माहौल में रहने से उच्च फ्रीक्वेंसी की ध्वनियों के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है, लेकिन समग्र सुनने की शक्ति कम हो जाती है।
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पहाड़ी क्षेत्रों के लोग: ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी, वायुदाब में परिवर्तन और ध्वनि के कम फैलाव के कारण इनकी सुनने की क्षमता अपेक्षाकृत कम पाई गई।
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जंगलों के समीप रहने वाले: शांत, प्राकृतिक और जैव विविधता वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोग अधिक संवेदनशील श्रवण क्षमता के साथ पाए गए। क्योंकि अस्तित्व के लिए उन्हें प्राकृतिक आवाजों की पहचान ज्यादा सटीक ढंग से करनी होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी
WHO के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति सप्ताह में 40 घंटे से ज्यादा 80 डेसिबल से अधिक ध्वनि में रहता है, तो यह कानों के लिए हानिकारक है। आज के शहरी माहौल में यह सीमा बार-बार पार हो जाती है, जिससे सुनने की समस्याएं बढ़ रही हैं।
क्या कहती हैं शोधकर्ता टुरी किंग?
प्रोफेसर किंग का कहना है, “हम पहले से जानते हैं कि उम्र के साथ सुनने की शक्ति घटती है, लेकिन यह देखना चौंकाने वाला है कि सभी भौगोलिक क्षेत्रों में महिलाओं की सुनने की शक्ति पुरुषों से बेहतर पाई गई। यह जैविक विकास का हिस्सा हो सकता है, जो अब तक अनदेखा रहा।”
क्या हैं इसके सामाजिक और स्वास्थ्यगत नतीजे?
यह अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि सुनने की समस्याओं से लड़ने के लिए केवल दवाइयों या तकनीक पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। इसके लिए:
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पर्यावरणीय शोर पर नियंत्रण
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स्वस्थ जीवनशैली अपनाना
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ध्वनि प्रदूषण के विरुद्ध सरकारी नीति
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विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के लिए जागरूकता कार्यक्रम
आवश्यक हैं।
निष्कर्ष
यह अध्ययन हमें बताता है कि सुनने की शक्ति केवल व्यक्तिगत मामला नहीं, बल्कि एक व्यापक जैविक और सामाजिक प्रक्रिया है, जिसे समझना बेहद जरूरी है। यदि हम सुनने से जुड़ी समस्याओं को गंभीरता से लेना शुरू करें, तो भविष्य में श्रवण हानि को एक वैश्विक संकट बनने से रोका जा सकता है।
महिलाओं में क्यों होती है पुरुषों से बेहतर सुनने की शक्ति? वैज्ञानिकों ने खोजे कारण
क्या आपने कभी महसूस किया है कि महिलाएं अक्सर छोटी-छोटी आवाजों या बातों को तुरंत सुन और समझ लेती हैं, जबकि पुरुष कई बार अनसुना कर जाते हैं? यह सिर्फ सामाजिक धारणा नहीं, बल्कि अब यह वैज्ञानिक तथ्यों से भी सिद्ध हो चुका है। हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में यह सामने आया है कि महिलाओं की सुनने की क्षमता पुरुषों के मुकाबले औसतन दो डेसीबेल अधिक होती है। इस अध्ययन में हिस्सा लेने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके पीछे जैविक, हार्मोनल और पर्यावरणीय कारक जिम्मेदार हो सकते हैं।
अध्ययन की शुरुआत और उद्देश्य
इस विषय पर अध्ययन फ्रांस के सेंटर फॉर बायोडायवर्सिटी एंड एनवायर्नमेंटल रिसर्च और ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ के वैज्ञानिकों के संयुक्त नेतृत्व में किया गया। मुख्य अनुसंधानकर्ताओं में डॉ. पैट्रिसिया बालरेस्क और प्रोफेसर टुरी किंग शामिल रहीं। शोध का उद्देश्य यह समझना था कि क्या सुनने की शक्ति केवल उम्र या बीमारी से प्रभावित होती है, या फिर लिंग, स्थान और जीवनशैली जैसे कारकों का भी इसमें हाथ होता है।
कैसे किया गया अध्ययन?
शोधकर्ताओं ने 13 देशों — जिनमें फ्रांस, इंग्लैंड, इक्वाडोर, गेबॉन, दक्षिण अफ्रीका और उज्बेकिस्तान शामिल थे — के 450 लोगों की सुनने की क्षमता का परीक्षण किया। इसमें जंगलों में रहने वाले समुदाय, पहाड़ों पर बसे लोग, और शहरी क्षेत्रों के निवासी शामिल थे।
शोध में ‘टीईओएई’ (Transient Evoked Otoacoustic Emissions) नामक विशेष परीक्षण विधि का इस्तेमाल किया गया, जिसमें यह जांचा गया कि कान के अंदर मौजूद कॉक्लिया (Cochlea) — जो आवाजों को मस्तिष्क तक पहुंचाता है — अलग-अलग प्रकार की ध्वनियों पर कैसी प्रतिक्रिया देता है।
महिलाओं की बेहतर सुनने की क्षमता के कारण
अध्ययन के अनुसार, महिलाओं की सुनने की क्षमता पुरुषों की तुलना में औसतन दो डेसिबल बेहतर पाई गई। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अंतर संभवतः निम्नलिखित कारणों से होता है:
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हार्मोनल परिवर्तन: महिलाओं में गर्भावस्था, मासिक धर्म और रजोनिवृत्ति जैसी स्थितियों के कारण हार्मोनल बदलाव होते रहते हैं, जो श्रवण प्रणाली पर प्रभाव डाल सकते हैं।
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कान की आंतरिक बनावट: स्त्रियों के कान की संरचना में मौजूद मामूली जैविक अंतर उनकी श्रवण शक्ति को प्रभावित कर सकते हैं।
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मस्तिष्क की प्रोसेसिंग क्षमता: महिलाओं का मस्तिष्क श्रवण संकेतों को तेजी से और बेहतर ढंग से प्रोसेस करता है, जिससे वे न केवल बेहतर सुन पाती हैं, बल्कि उन्हें समझने में भी अधिक सक्षम होती हैं।
पर्यावरण और स्थान का भी असर
अध्ययन में यह भी पाया गया कि सुनने की क्षमता केवल लिंग पर निर्भर नहीं करती, बल्कि व्यक्ति कहां रहता है, यह भी बहुत मायने रखता है। उदाहरण के लिए:
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शहरी लोग: लगातार ट्रैफिक, मशीनों और भीड़भाड़ वाले माहौल में रहने से उच्च फ्रीक्वेंसी की ध्वनियों के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है, लेकिन समग्र सुनने की शक्ति कम हो जाती है।
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पहाड़ी क्षेत्रों के लोग: ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी, वायुदाब में परिवर्तन और ध्वनि के कम फैलाव के कारण इनकी सुनने की क्षमता अपेक्षाकृत कम पाई गई।
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जंगलों के समीप रहने वाले: शांत, प्राकृतिक और जैव विविधता वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोग अधिक संवेदनशील श्रवण क्षमता के साथ पाए गए। क्योंकि अस्तित्व के लिए उन्हें प्राकृतिक आवाजों की पहचान ज्यादा सटीक ढंग से करनी होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी
WHO के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति सप्ताह में 40 घंटे से ज्यादा 80 डेसिबल से अधिक ध्वनि में रहता है, तो यह कानों के लिए हानिकारक है। आज के शहरी माहौल में यह सीमा बार-बार पार हो जाती है, जिससे सुनने की समस्याएं बढ़ रही हैं।
क्या कहती हैं शोधकर्ता टुरी किंग?
प्रोफेसर किंग का कहना है, “हम पहले से जानते हैं कि उम्र के साथ सुनने की शक्ति घटती है, लेकिन यह देखना चौंकाने वाला है कि सभी भौगोलिक क्षेत्रों में महिलाओं की सुनने की शक्ति पुरुषों से बेहतर पाई गई। यह जैविक विकास का हिस्सा हो सकता है, जो अब तक अनदेखा रहा।”
क्या हैं इसके सामाजिक और स्वास्थ्यगत नतीजे?
यह अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि सुनने की समस्याओं से लड़ने के लिए केवल दवाइयों या तकनीक पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। इसके लिए:
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पर्यावरणीय शोर पर नियंत्रण
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स्वस्थ जीवनशैली अपनाना
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ध्वनि प्रदूषण के विरुद्ध सरकारी नीति
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विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के लिए जागरूकता कार्यक्रम
आवश्यक हैं।
निष्कर्ष
यह अध्ययन हमें बताता है कि सुनने की शक्ति केवल व्यक्तिगत मामला नहीं, बल्कि एक व्यापक जैविक और सामाजिक प्रक्रिया है, जिसे समझना बेहद जरूरी है। यदि हम सुनने से जुड़ी समस्याओं को गंभीरता से लेना शुरू करें, तो भविष्य में श्रवण हानि को एक वैश्विक संकट बनने से रोका जा सकता है।