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भारतीय फार्मा उद्योग में बड़ा बदलाव: 100 से अधिक एमएसएमई कंपनियां कर रही हैं आधुनिकीकरण
नई दिल्ली: भारतीय दवा उद्योग एक महत्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रहा है। केंद्र सरकार द्वारा संशोधित गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज़ (GMP) को अनिवार्य करने के बाद, 100 से अधिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) फार्मा कंपनियां अपनी उत्पादन इकाइयों का आधुनिकीकरण कर रही हैं। यह कदम विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) मानकों के अनुरूप दवा निर्माण की गुणवत्ता को सुधारने के लिए उठाया गया है।
दवा निर्माण की गुणवत्ता को मजबूत करने के लिए सरकार ने औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 की अनुसूची एम (Schedule M) में संशोधन किया है। इस संशोधन के तहत, 250 करोड़ रुपये से अधिक टर्नओवर वाली कंपनियों को 6 महीने में और छोटी एवं मध्यम दवा कंपनियों को 12 महीने में अपनी उत्पादन इकाइयों को नए मानकों के अनुसार अपग्रेड करना होगा।
हालांकि, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों की एमएसएमई दवा कंपनियों ने इसे लागू करने के लिए 3 साल का अतिरिक्त समय मांगा है। उनका कहना है कि एक साल की अवधि में नई तकनीक और इंफ्रास्ट्रक्चर में बदलाव करना उनके लिए मुश्किल हो सकता है।
संशोधित GMP दिशानिर्देशों में निम्नलिखित प्रमुख सुधार किए जा रहे हैं:
✅ फार्मास्युटिकल गुणवत्ता प्रणाली को बेहतर बनाया जा रहा है।
✅ गुणवत्ता जोखिम प्रबंधन को लागू किया जाएगा।
✅ उत्पाद गुणवत्ता समीक्षा की प्रक्रिया को मजबूत किया जा रहा है।
✅ नई कंप्यूटरीकृत प्रणाली को शामिल किया जा रहा है, जिससे दवा निर्माण प्रक्रिया और ट्रैकिंग अधिक पारदर्शी होगी।
✅ स्टेराइल और हाई-रिस्क दवाओं के निर्माण के लिए सख्त मानकों को अपनाया जा रहा है।
वर्तमान में, भारत में लगभग 10,500 दवा निर्माण इकाइयाँ हैं, जिनमें से करीब 8,500 एमएसएमई कंपनियाँ हैं। लेकिन इनमें से केवल 2,000 कंपनियाँ ही WHO-GMP प्रमाणित हैं। नई नीति के लागू होने से भारतीय दवा उद्योग की वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, और भारतीय दवाओं की गुणवत्ता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक पहचान मिलेगी।
औषधि उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव भारत को “फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड” बनाए रखने में मदद करेगा। भारत पहले से ही जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक है, और यह आधुनिकीकरण प्रक्रिया देश के फार्मा उद्योग को अंतरराष्ट्रीय मानकों पर और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएगी।
सरकार का यह कदम दवा निर्माण प्रक्रिया में पारदर्शिता और गुणवत्ता सुधार लाने की दिशा में महत्वपूर्ण है। हालांकि, एमएसएमई कंपनियों को समय और वित्तीय सहायता की जरूरत होगी, ताकि वे बिना किसी कठिनाई के इन नए मानकों को अपना सकें। यदि यह प्रक्रिया सुचारू रूप से लागू हो गई, तो यह भारत की फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकती है।
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