जेनेरिक दवाओं पर प्रतीक चिह्न अनिवार्य करने की मांग: हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार से चार हफ्ते में मांगा जवाब
प्रयागराज | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जेनेरिक दवाओं की पारदर्शिता, मूल्य नियंत्रण और पहचान को लेकर दाखिल एक जनहित याचिका पर केंद्र व राज्य सरकार, राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) सहित अन्य पक्षों से चार सप्ताह में जवाब मांगा है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एस.डी. सिंह और न्यायमूर्ति संदीप जैन की खंडपीठ ने याची संजय सिंह की जनहित याचिका पर अधिवक्ता गोपाल जी खरे की दलीलें सुनने के बाद जारी किया। याचिका में जेनेरिक दवाओं की कीमतों में भारी अंतर, मुनाफाखोरी, ब्रांडेड दवाओं को प्राथमिकता और जेनेरिक दवाओं की पहचान के लिए प्रतीक चिह्न न होने जैसे मुद्दे उठाए गए हैं।
याचिका की प्रमुख आपत्तियां:
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कीमतों में भारी अंतर: याचिका में कहा गया है कि जेनेरिक दवाएं मूल्य नियंत्रण सूची में शामिल होने के बावजूद कई मेडिकल स्टोर और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर ही बेची जा रही हैं।
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पारदर्शिता की कमी: मरीजों को यह तक नहीं पता चलता कि कौन सी दवा ब्रांडेड है और कौन सी जेनेरिक, जिससे वे मूल्य लाभ से वंचित रह जाते हैं।
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सरकारी प्रतीक चिह्न की मांग: याचिकाकर्ता ने मांग की है कि सभी जेनेरिक दवाओं पर एक अनिवार्य प्रतीक चिह्न लागू किया जाए, ताकि उपभोक्ता भ्रमित न हों और सरकारी सब्सिडी या मूल्य नियंत्रण का लाभ सीधे अंतिम उपयोगकर्ता को मिल सके।
लिखित प्रार्थना पत्र का भी उल्लेख
याचिका में यह भी बताया गया है कि मार्च 2025 में सभी संबंधित अधिकारियों को इस विषय पर लिखित अनुरोध भेजा गया था, लेकिन अभी तक कोई ठोस जवाब प्राप्त नहीं हुआ है।
याचिका की मुख्य मांगें:
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अनिवार्य प्रतीक चिह्न: सभी जेनेरिक दवाओं पर एक मानकीकृत प्रतीक चिह्न लगाया जाए।
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उपभोक्ता लाभ सुनिश्चित किया जाए: मूल्य नियंत्रण और सब्सिडी का सीधा लाभ अंतिम उपभोक्ता को मिले।
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निगरानी तंत्र: मेडिकल स्टोर और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर जेनेरिक दवाओं की बिक्री और मूल्य नियंत्रण की निगरानी के लिए एक विशेष समिति गठित की जाए।
क्या है अगला कदम?
कोर्ट ने सभी पक्षों को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। जवाबों के बाद अगली सुनवाई की तिथि तय की जाएगी।
भारत सरकार वर्षों से जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देने के लिए ‘जनऔषधि केंद्र’ और मूल्य नियंत्रण नीति जैसी पहल कर रही है, लेकिन याचिका में दावा किया गया है कि जमीनी स्तर पर मरीजों तक इसका लाभ सही ढंग से नहीं पहुंच रहा है।