नकली दवाओं पर कसेगा शिकंजा, नीति आयोग से टास्क फोर्स गठित करने की मांग
नई दिल्ली। भारत में नकली दवाओं के बढ़ते खतरे को देखते हुए अब नियामक अधिकारी सख्त कदम उठाने की तैयारी में हैं। हाल के महीनों में देश के कई राज्यों में नकली दवाओं के मामलों में आई बेतहाशा बढ़ोतरी के बाद ड्रग कंट्रोल अधिकारियों ने नीति आयोग से विशेष प्रवर्तन टास्क फोर्स के गठन की औपचारिक सिफारिश की है।
इस विशेष टास्क फोर्स का नेतृत्व एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को सौंपे जाने का प्रस्ताव है, जिसमें तकनीकी रूप से दक्ष युवा ड्रग इंस्पेक्टरों की नियुक्ति की जाएगी। यह बल अनुभव और विशेषज्ञता का ऐसा संयोजन होगा, जो देशभर में फैल चुके संगठित नकली दवा नेटवर्क को तोड़ने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
JDC सुमंत तिवारी का प्रस्ताव
झारखंड के संयुक्त औषधि नियंत्रक (JDC) सुमंत कुमार तिवारी ने नीति आयोग को एक विस्तृत प्रस्ताव भेजते हुए टास्क फोर्स के नेतृत्व के लिए इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) या ऐसे वरिष्ठ IPS अधिकारी की सिफारिश की है, जिन्होंने पहले किसी राज्य के औषधि नियंत्रण प्रशासन में महानिदेशक के रूप में कार्य किया हो।
फार्माबिज के साथ साझा किए गए एक सर्वेक्षण में तिवारी ने खुलासा किया है कि भारतीय बाजार में नकली दवाओं की मात्रा में करीब 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसमें PAN-D और लेविपिल 500 जैसी पॉपुलर दवाएं भी शामिल हैं, जो सामान्य मरीजों के लिए अत्यंत जोखिमपूर्ण स्थिति पैदा कर रही हैं।
11 राज्यों में बड़ा नेटवर्क उजागर
पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, गुजरात, तेलंगाना, दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे कम से कम 11 राज्यों में नकली दवाओं का इंटरस्टेट नेटवर्क सामने आया है। इन नेटवर्क्स में फर्जी क्यूआर कोड से लेकर ब्रांडेड दवाओं की हूबहू नकल की जा रही है।
कई राज्यों के नियामकों ने चिन्हित किया है कि कुछ शहर नकली दवा मार्केटिंग के केंद्र बन चुके हैं। उन्होंने राज्य सरकारों से स्टाफ की भारी कमी को दूर करने के लिए प्रशिक्षित निरीक्षकों की तैनाती की मांग भी की है।
तकनीकी समाधान और निगरानी प्रणाली की सिफारिश
तिवारी के प्रस्ताव में दवाओं की पारदर्शी ट्रैकिंग के लिए आधुनिक तकनीक के उपयोग की वकालत की गई है, जिसमें सभी दवा पैकेटों पर सुरक्षित क्यूआर कोड की अनिवार्यता, राष्ट्रीय डेटाबेस से रियल टाइम जुड़ाव, और API (सक्रिय दवा घटक), एक्सिपिएंट्स व मशीनरी तक की निगरानी शामिल है।
नीति और जन-जागरूकता पर फोकस
प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि नीति आयोग स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर मौजूदा ‘अनुसूची एम’ से आगे बढ़ते हुए अधिक कठोर गुणवत्ता मानकों की नीति बनाए। साथ ही पूरे देश में फार्मासिस्टों और आम उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान चलाया जाए, ताकि वे संदिग्ध दवाओं की पहचान कर सकें और संबंधित विभागों को रिपोर्ट कर सकें।
भारत में नकली दवाओं की समस्या अब केवल एक स्वास्थ्य संकट नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दा बन गई है। अगर नीति आयोग प्रस्तावित टास्क फोर्स को मंजूरी देता है, तो यह देश में दवा नियमन की दिशा में एक ऐतिहासिक और निर्णायक कदम हो सकता है