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June 30, 2025 Vol 20

बिना जांच के बांटी गईं ₹926 करोड़ की दवाएं – कैग रिपोर्ट से खुलासा

बिना जांच के बांटी गईं ₹926 करोड़ की दवाएं – कैग रिपोर्ट से खुलासा

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लखनऊ   उत्तर प्रदेश की सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं एक बार फिर कठघरे में खड़ी हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की वर्ष 2023-24 की रिपोर्ट में राज्य में स्वास्थ्य विभाग की बड़ी लापरवाही और संभावित भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2018 से 2023 के बीच करीब ₹926.44 करोड़ की दवाएं बिना गुणवत्ता जांच के मरीजों को बांटी गईं।

कैसे सामने आया मामला?

कैग ने राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी एक ऑडिट रिपोर्ट विधानसभा में पेश की है, जिसमें कहा गया है कि राज्य के अधिकांश जिला अस्पतालों और सीएमओ कार्यालयों में दवाओं की गुणवत्ता जांच के प्रमाण (Quality Assurance Certificates) मौजूद नहीं थे।

रिपोर्ट अंश:

“Out of total drug procurement amounting to ₹1,231 crore, medicines worth ₹926.44 crore were issued to hospitals and patients without any quality testing certification.”

कहां-कहां हुई गड़बड़ी?

  • उत्तर प्रदेश चिकित्सा आपूर्ति निगम (UPMSCL), जिसे दवाओं की खरीद और आपूर्ति का जिम्मा सौंपा गया था, ने बड़ी मात्रा में दवाएं बिना किसी लैब जांच के जिलों में भेज दीं।

  • रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कई जिलों ने दवाओं की आपूर्ति के बाद गुणवत्ता जांच के लिए न सैंपल भेजे और न ही रिपोर्ट मंगवाई

  • कुछ मामलों में सप्लायर्स को दवाओं की आपूर्ति के तुरंत बाद भुगतान कर दिया गया, बिना यह सुनिश्चित किए कि दवाएं सुरक्षित और प्रभावी हैं या नहीं।


गुणवत्ता जांच क्यों है जरूरी?

भारत में फार्मास्युटिकल गुणवत्ता नियंत्रण के लिए भारतीय फार्माकोपिया आयोग (IPC) द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार, हर बैच की दवाएं प्रयोगशालाओं में जांची जानी चाहिए। बिना जांच के दवा वितरण न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह मरीजों की जान के लिए खतरा बन सकता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि बिना जांच के दवाओं का वितरण, खासकर सरकारी अस्पतालों में आने वाले गरीब और कमजोर तबके के लोगों के साथ अन्याय और स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है।


कैग रिपोर्ट की अन्य अहम बातें:

  • 13 जिलों में निरीक्षण के दौरान यह पाया गया कि आपूर्ति की गई दवाओं के 70% बैचों के कोई परीक्षण प्रमाण पत्र नहीं थे।

  • कई जिलों ने एक्सपायरी के करीब पहुंच चुकी दवाओं को भी बिना जांच वितरित किया।

  • कुछ मामलों में सप्लायर्स की लाइसेंसिंग और क्यूसी प्रक्रिया में भी अनियमितताएं पाई गईं।


राजनीतिक प्रतिक्रिया और जन आक्रोश:

विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा:

  • समाजवादी पार्टी के नेता ने कहा, “यह सरकार की घोर लापरवाही है। गरीब मरीजों को जहरीली या बेअसर दवाएं दी गईं – यह हत्या के बराबर है।”

  • कांग्रेस ने स्वास्थ्य मंत्री से तत्काल इस्तीफा मांगते हुए कहा कि “अगर दवाओं की जांच नहीं हो रही तो ये सिस्टम सिर्फ कमीशनखोरी चला रहा है, इलाज नहीं।”

सरकार की सफाई:
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने रिपोर्ट पर संज्ञान लेने की बात कही है और जांच के आदेश जारी किए हैं। हालांकि अब तक किसी पर कार्रवाई नहीं हुई है।


📷 जमीनी हालात:

राजधानी लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, मेरठ जैसे प्रमुख जिलों के अस्पतालों में काम कर रहे डॉक्टरों और स्टाफ से बात करने पर पता चला कि –

  • “हमें दवाएं आती हैं, लेकिन कभी कोई टेस्ट रिपोर्ट नहीं मिलती। हम तो बस जो आया, वही मरीज को दे देते हैं।”

  • “कई बार मरीजों से शिकायत मिलती है कि दवा बेअसर है, लेकिन हम कुछ कर नहीं पाते।”


📊 इंफोग्राफिक डेटा 

वर्ष खरीदी गई दवाओं की कुल राशि बिना जांच वितरित दवाएं
2018-2023 ₹1,231 करोड़ ₹926.44 करोड़
जिला अस्पतालों में निरीक्षण 13 जिले 70% दवाएं बिना जांच

कैग रिपोर्ट ने उत्तर प्रदेश में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की गंभीर खामियों को उजागर किया है। अब देखना यह है कि योगी सरकार इस पर कोई ठोस कदम उठाती है या इसे भी नौकरशाही की फाइलों में दफन कर दिया जाएगा।

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