उत्तराखंड में ड्रग अलर्ट विवाद: औषधि निर्माताओं ने उठाए सवाल, राज्य की छवि पर असर”
मुख्यमंत्री के निर्देश पर बुलाई गई समीक्षा बैठक, ड्रग अलर्ट की वैधता पर उठे सवाल
देहरादून राज्य में हाल ही में विभिन्न मीडिया माध्यमों में प्रकाशित “अधोमानक औषधियों” (Substandard Drugs) की खबरों पर मुख्यमंत्री के निर्देश पर आज एक समीक्षा बैठक आयोजित की गई। यह बैठक कार्यालय आयुक्त, खाद्य संरक्षा व औषधि प्रशासन (उत्तराखण्ड) में हुई, जिसमें राज्य की औषधि निर्माता कंपनियों के प्रबंध निदेशक, प्रतिनिधि और औषधि निर्माता एसोसिएशन के पदाधिकारी शामिल हुए।
बैठक में राज्य औषधि नियंत्रक ने फर्मों को बताया कि CDSCO (Central Drugs Standard Control Organization) पोर्टल पर जारी ड्रग अलर्ट्स के चलते उत्तराखंड में निर्मित दवाओं को लेकर नकारात्मक खबरें प्रकाशित हुई हैं, जिससे राज्य की और फर्मों की साख को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचा है।
फर्मों की आपत्ति: बिना पुष्टि के सार्वजनिक किए गए अलर्ट
बैठक में फर्मों ने बताया कि:
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ड्रग अलर्ट जारी करने से पहले संबंधित नमूनों की प्रमाणिकता की पुष्टि होनी चाहिए।
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अधोमानक घोषित नमूने की धारा 18(A) के तहत जांच होनी चाहिए और जांच रिपोर्ट व नमूने की कॉपी फर्म को भेजी जानी चाहिए।
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धारा 25(3) के तहत फर्म को रिपोर्ट को चैलेंज करने का अधिकार है।
कई मामलों में फर्मों ने दावा किया कि जब उन्हें सैम्पल व रिपोर्ट उपलब्ध कराए गए तो उन्होंने रिपोर्ट को चुनौती दी और पुनः जांच में दवा मानकों पर खरी उतरी।
नकली सैम्पल भी राज्य से जोड़े जा रहे: कूपर फार्मा का मामला
उदाहरण के तौर पर “Buprenorphine Injection” का मामला उठाया गया, जिसे ड्रग अलर्ट में उत्तराखंड की कूपर फार्मा द्वारा निर्मित बताया गया, लेकिन जांच में वह दवा बिहार में बनी नकली (spurious) पाई गई। फर्म ने स्पष्ट किया कि वह दवा उन्होंने कभी बनाई ही नहीं।
विभागीय रुख: गुणवत्ता पर समझौता नहीं, पर प्रक्रिया का पालन अनिवार्य
अपर आयुक्त / राज्य औषधि नियंत्रक ने सभी फर्मों से गुणवत्ता के उच्चतम मानकों का पालन सुनिश्चित करने को कहा और यह भरोसा दिलाया कि जो लोग गैर कानूनी गतिविधियों में लिप्त पाए जाएंगे, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
फर्मों की मांग – जांच पारदर्शी हो, छवि पर न हो आंच
बैठक में सभी फर्मों ने एक सुर में कहा कि ड्रग अलर्ट की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए ताकि राज्य और उद्योग की छवि पर आंच न आए।
अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि CDSCO और राज्य औषधि विभाग इस फीडबैक को कैसे लेता है और क्या सुधारात्मक कदम उठाए जाते है