फार्मा एमएसएमई ने कठिन नियामक माहौल के खिलाफ देशव्यापी विरोध की चेतावनी दी

फार्मा एमएसएमई ने कठिन नियामक माहौल के खिलाफ देशव्यापी विरोध की चेतावनी दी

नई दिल्ली। देश की फार्मा एमएसएमई इकाइयों ने कठिन और असमान नियामक माहौल के खिलाफ गंभीर चिंता जताते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को ज्ञापन सौंपा है। सीआईपीआई, एफओपीई और एलयूबी सहित एक दर्जन से अधिक उद्योग संघों का प्रतिनिधित्व करने वाले इस संयुक्त मंच ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया तो देशभर में आंदोलन तेज किया जाएगा।

संयुक्त मंच ने अपने ज्ञापन में कहा कि भारतीय फार्मा एमएसएमई अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से जूझ रहे हैं। मंच का आरोप है कि सीडीएससीओ की कठोर कार्रवाई और संशोधित नियम बड़े उद्योग घरानों व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में बनाए गए हैं, जिससे छोटे और मध्यम स्तर की इकाइयों को व्यवस्थित तरीके से खत्म किया जा रहा है।

मुख्य विवाद का मुद्दा संशोधित अनुसूची एम है, जिसके तहत 1 जनवरी 2026 से नई जीएमपी आवश्यकताओं को लागू करना अनिवार्य होगा। मंच का कहना है कि इन प्रावधानों को एमएसएमई के सुझावों को नजरअंदाज करते हुए अधिसूचित किया गया है। अनुपालन की उच्च लागत के कारण लगभग 4,000–5,000 इकाइयों के बंद होने का खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने 50 करोड़ रुपये से कम टर्नओवर वाली इकाइयों के लिए इस समयसीमा को 1 अप्रैल 2027 तक बढ़ाने की मांग की है।

इसी तरह, मंच ने जैव-तुल्यता (बीई) अध्ययन अधिसूचना के पूर्वव्यापी प्रभाव पर भी आपत्ति जताई है। प्रतिनिधियों के अनुसार, प्रति उत्पाद 25 से 50 लाख रुपये की लागत वाली इन स्टडीज़ को वहन करना एमएसएमई के लिए असंभव है। उनका कहना है कि इससे दवाओं की भारी कमी हो सकती है और उद्योग के लिए यह ‘मृत्यु वारंट’ साबित होगा।

संयुक्त मंच ने एनडीसीटी नियम 2019 के पूर्वव्यापी प्रभाव, गैर-मादक दवाओं के निर्यात पर अनिवार्य एनओसी, और एनएसक्यू (मानक गुणवत्ता से कम) दवाओं के डेटा प्रकाशन जैसी समस्याओं को भी प्रमुख चिंता के रूप में रखा। मंच का कहना है कि एनएसक्यू डेटा का मासिक प्रकाशन केवल 2.64 प्रतिशत दवाओं पर आधारित है, लेकिन इससे भारतीय दवा उद्योग की अंतरराष्ट्रीय साख पर गलत असर पड़ रहा है। उन्होंने मांग की है कि इसके साथ-साथ ‘मानक गुणवत्ता वाली दवा सूची’ भी प्रकाशित की जाए।

मंच ने स्वास्थ्य मंत्री से तत्काल बैठक की मांग करते हुए कहा है कि सरकार अगर उद्योग की वास्तविक कठिनाइयों को समझकर राहत नहीं देगी, तो एमएसएमई इकाइयों का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। संघों ने चेतावनी दी कि यदि उनकी समस्याओं का समाधान जल्द नहीं हुआ तो वे मजबूर होकर देशव्यापी विरोध आंदोलन शुरू करेंगे।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *