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June 2, 2025 Vol 20

उत्तराखण्ड में दवाओं के निस्तारण को लेकर बड़ा कदम, राज्य बनेगा ‘हरित स्वास्थ्य प्रणाली’ का मॉडल

उत्तराखण्ड में दवाओं के निस्तारण को लेकर बड़ा कदम, राज्य बनेगा ‘हरित स्वास्थ्य प्रणाली’ का मॉडल

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देहरादून – उत्तराखण्ड सरकार ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में एक अहम पर्यावरणीय और स्वास्थ्य-सुरक्षा से जुड़ी पहल की शुरुआत की है। अब राज्य में एक्सपायर्ड और अप्रयुक्त दवाओं के वैज्ञानिक व जिम्मेदार निस्तारण के लिए सुनियोजित प्रणाली विकसित की जा रही है।

स्वास्थ्य सचिव एवं आयुक्त, एफडीए डॉ. आर. राजेश कुमार ने बताया कि यह पहल केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के दिशा-निर्देशों पर आधारित है और इसका उद्देश्य उत्तराखण्ड को ‘हरित स्वास्थ्य प्रणाली’ के मॉडल राज्य के रूप में स्थापित करना है। उन्होंने कहा, “अब तक दवाओं के निस्तारण को लेकर कोई ठोस और संगठित प्रणाली नहीं थी। उत्तराखण्ड जैसे संवेदनशील पर्यावरणीय राज्य के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन अब हम इसे एक सुसंगत व्यवस्था के तहत लागू करने जा रहे हैं।”

इस योजना के अंतर्गत राज्य के शहरी, अर्ध-शहरी और पर्वतीय क्षेत्रों में चरणबद्ध रूप से ‘ड्रग टेक-बैक साइट्स’ की स्थापना की जाएगी। आम नागरिक इन केंद्रों पर अपने घरों में पड़ी एक्सपायर्ड या अप्रयुक्त दवाएं जमा करा सकेंगे। इन दवाओं को बाद में वैज्ञानिक पद्धति से विशेष प्रोसेसिंग यूनिट्स में नष्ट किया जाएगा।

अपर आयुक्त एफडीए और ड्रग कंट्रोलर ताजबर सिंह जग्गी ने कहा कि अब तक दवाओं का निस्तारण असंगठित ढंग से होता रहा है, जिससे न केवल पर्यावरण बल्कि जनस्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। अब इसे नियंत्रित करने के लिए थर्ड पार्टी मॉनिटरिंग सिस्टम और स्थानीय ड्रग एनफोर्समेंट यूनिट्स की मदद ली जाएगी।

उन्होंने आगे कहा, “निर्माता, थोक विक्रेता, रिटेलर्स, अस्पताल और उपभोक्ताओं — सभी की जिम्मेदारी तय की जाएगी। हम इसके लिए जन-जागरूकता अभियान भी चलाएंगे ताकि यह व्यवस्था जमीनी स्तर तक प्रभावी हो सके।”

मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा घोषित “स्वस्थ नागरिक, स्वच्छ उत्तराखण्ड” मिशन के तहत यह पहल न केवल राज्य को स्वच्छ और हरित बनाएगी, बल्कि उत्तराखण्ड को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक जिम्मेदार और नवाचारी राज्य के रूप में भी प्रस्तुत करेगी।

यह कदम केवल पर्यावरण की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और नीति निर्माण के क्षेत्र में भी उत्तराखण्ड के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

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