
बिना निविदा प्रक्रिया दवा खरीद का विवाद: पारदर्शिता बनाम प्रशासनिक निर्णय
महाराष्ट्र में सरकारी मेडिकल कॉलेजों के लिए 131 करोड़ रुपये की दवा खरीद प्रक्रिया ने विवाद खड़ा कर दिया है। यह खरीद हाफकिन बायोफार्मास्युटिकल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचबीसीएल) द्वारा चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान निदेशालय (DMER) के तहत की गई, लेकिन बिना किसी नियमित निविदा प्रक्रिया के। इस मुद्दे को लेकर ऑल फूड एंड ड्रग लाइसेंस होल्डर्स फाउंडेशन (AFDLHF)** के अध्यक्ष अभय पांडे ने गंभीर आपत्ति जताई है और उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।
मामले की पृष्ठभूमि
महाराष्ट्र में मेडिकल गुड्स प्रोक्योरमेंट अथॉरिटी एक्ट, 2023 लागू है, जो सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों के लिए चिकित्सा उपकरणों और दवाओं की खरीद को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए लाया गया था। इस कानून के तहत हाफकिन से उसकी खरीदारी शक्तियां वापस ले ली गई थीं, और यह जिम्मेदारी एक समर्पित सरकारी एजेंसी को दी गई थी। लेकिन, DMER ने इस कानून का पालन किए बिना ही हाफकिन के जरिए दवाएं खरीद लीं।
क्यों उठे सवाल?
1. बिना निविदा के खरीदारी – सरकार के नियमों के तहत किसी भी सार्वजनिक खरीद के लिए निविदा प्रक्रिया अनिवार्य है, ताकि प्रतिस्पर्धा बनी रहे और कीमतों में पारदर्शिता हो।
2. भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितता की आशंका – जब प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया नहीं होती, तो यह पक्षपात और वित्तीय कुप्रबंधन का कारण बन सकता है।
3. कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन – महाराष्ट्र सरकार का नया अधिनियम हाफकिन को दवा खरीदने का अधिकार नहीं देता, लेकिन इसके बावजूद उसे यह जिम्मेदारी दी गई।
AFDLHF का रुख
अभय पांडे ने स्पष्ट कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च में पारदर्शिता गैर-परक्राम्य है। उन्होंने दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की और कहा कि **”अगर इस तरह के फैसलों को नजरअंदाज किया गया, तो यह स्वास्थ्य क्षेत्र में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगा।”
राज्य सरकार की प्रतिक्रिया
अब तक, सरकार ने इस विवाद पर **कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया** है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि इस मामले की आंतरिक समीक्षा हो सकती है और फैसले की जांच के लिए एक समिति बनाई जा सकती है।
बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई
यह मामला 10 मार्च को बॉम्बे हाईकोर्ट में सुना जाएगा। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला महाराष्ट्र में भविष्य की मेडिकल खरीद नीतियों को प्रभावित कर सकता है।
क्या होगा आगे?
– अगर अदालत **सरकार के फैसले को गलत ठहराती है, तो DMER के अधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है।
– महाराष्ट्र सरकार को नई नीति बनानी पड़ सकती है , जिससे भविष्य में इस तरह की खरीद पारदर्शी ढंग से हो।
– अगर अदालत सरकार के पक्ष में फैसला देती है, तो यह अन्य विभागों के लिए भी बिना निविदा प्रक्रिया के खरीदारी का रास्ता खोल सकता है