
भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: राज्यों को शिकायत निवारण तंत्र बनाने का निर्देश
दिल्ली:– सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों पर कड़ा रुख अपनाते हुए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दो महीने के भीतर शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे विज्ञापन “समाज को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं”, इसलिए आम जनता को इनकी शिकायत दर्ज करने के लिए एक उपयुक्त मंच मिलना चाहिए।
क्या है मामला?
इस मुद्दे की जड़ें 2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) द्वारा दायर की गई याचिका से जुड़ी हैं। IMA ने पतंजलि और योग गुरु रामदेव पर कोविड टीकाकरण और आधुनिक चिकित्सा पद्धति के खिलाफ दुष्प्रचार करने का आरोप लगाया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान भ्रामक विज्ञापनों की समस्या पर भी ध्यान गया, खासकर उन विज्ञापनों पर जो झूठे दावों के जरिए जनता को गुमराह करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश:
- शिकायत निवारण तंत्र: न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि सभी राज्य सरकारें दो महीने के भीतर ऐसा तंत्र तैयार करें, जहां लोग औषधि एवं जादुई उपचार अधिनियम, 1954 के तहत प्रतिबंधित विज्ञापनों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकें।
- जनजागरूकता: कोर्ट ने आदेश दिया कि शिकायत निवारण तंत्र की मौजूदगी के बारे में जनता को नियमित रूप से जानकारी दी जाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसका उपयोग कर सकें।
- पुलिस तंत्र को संवेदनशील बनाना: राज्यों को निर्देश दिया गया कि वे पुलिस को इस अधिनियम के प्रावधानों के प्रति संवेदनशील बनाएं, ताकि वे ऐसे मामलों में उचित कार्रवाई कर सकें।
- स्व-घोषणा नियम: सुप्रीम कोर्ट ने पहले 7 मई 2024 को आदेश दिया था कि किसी भी विज्ञापन को जारी करने से पहले केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 की तर्ज पर विज्ञापनदाताओं से स्व-घोषणा ली जाए।
क्यों जरूरी है यह कदम?
भ्रामक विज्ञापन अक्सर झूठे दावे करके जनता को गुमराह करते हैं। खासतौर पर स्वास्थ्य से जुड़े मामलों में ये बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं। कोविड महामारी के दौरान ऐसे कई उदाहरण सामने आए जब बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाण के दवाओं और उपचारों के चमत्कारी दावे किए गए।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश न केवल आम जनता को सुरक्षा देगा, बल्कि झूठे प्रचार करने वालों पर सख्ती करने में भी मदद करेगा। अब देखना यह है कि राज्य सरकारें इस आदेश को कितनी गंभीरता से लागू करती हैं और जमीनी स्तर पर इसका असर कितना होता है।
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