“संशोधित अनुसूची M पर बड़ा एक्शन — सीडीएससीओ का सख्त रुख, गैर-अनुपालन एसएमई पर गिरेगी गाज!”
नई दिल्ली। देश की दवा निर्माण इकाइयों पर अब बड़ी कार्रवाई की तलवार लटक रही है।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के औषधि नियंत्रकों को सख्त निर्देश दिए हैं —
“250 करोड़ रुपये से कम टर्नओवर वाली उन दवा कंपनियों पर तुरंत निरीक्षण और कार्रवाई शुरू करें, जिन्होंने संशोधित अनुसूची M के पालन की समय-सीमा बढ़ाने के लिए आवेदन नहीं किया है।”
अब ‘वेट एंड वॉच’ नहीं चलेगा
डीसीजीआई डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी ने स्पष्ट कहा है —
“जिन इकाइयों ने विस्तार के लिए आवेदन नहीं किया, उनके लिए संशोधित अनुसूची M पहले से लागू है। ऐसे मामलों में निरीक्षण और कार्रवाई तुरंत की जाएगी।”
केंद्रीय आदेश में यह भी कहा गया है कि
- राज्य औषधि नियामक हर माह केंद्र को निरीक्षण रिपोर्ट और की गई कार्रवाई का विवरण भेजेंगे।
- यह निर्देश “सर्वोच्च प्राथमिकता” के रूप में लागू किया जाए।
हजारों एसएमई पर बंदी का खतरा
इस सख्ती का असर देशभर की लघु एवं मध्यम दवा इकाइयों (SMEs) पर साफ दिखने लगा है।
रिपोर्टों के अनुसार,
हिमाचल औषधि निर्माता संघ के अध्यक्ष डॉ. राजेश गुप्ता ने चेताया कि
“नए मानकों को लागू करने में भारी निवेश लगेगा, जिससे करीब 4,000–5,000 दवा इकाइयां बंद होने की कगार पर हैं।”
इनमें से कई यूनिट्स ने पहले ही अपनी फैक्ट्रियां बंद कर दी हैं या बड़ी कंपनियों को बेच दी हैं।
उद्योग जगत का कहना है कि “केंद्र अगर थोड़ी मोहलत दे देता तो छोटे उद्यम सांस ले पाते।”
समयसीमा बढ़ाने की गुहार
देशभर के 20 से अधिक दवा संघों ने सरकार से मांग की है कि
- 50 करोड़ रुपये से कम टर्नओवर वाली इकाइयों को अतिरिक्त समय दिया जाए।
- नई अनुसूची M लागू करने से पहले वित्तीय सहायता या विशेष राहत पैकेज दिया जाए।
दूषित सिरप विवाद ने बदली सूरत
हालांकि, नियामक विशेषज्ञों के मुताबिक, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में दूषित कफ सिरप से हुई बच्चों की मौतों के बाद अब केंद्र सरकार किसी भी तरह की छूट देने के मूड में नहीं है।
पूर्व फार्मेक्सिल महानिदेशक और AIDCOC के मानद महानिदेशक आर उदय भास्कर का कहना है —
“यह कदम जरूरी था। इससे भारत की दवा निर्माण गुणवत्ता विश्वस्तर पर मजबूत होगी।”
राज्य स्तर पर शुरू हुई कार्रवाई
सूत्रों के अनुसार,
- कुछ राज्य औषधि नियंत्रण विभागों ने पहले ही गैर-अनुपालन इकाइयों की पहचान और निरीक्षण शुरू कर दिया है।
- कई जगह औषधि नियंत्रण अधिकारियों ने लाइसेंस नवीनीकरण रोकने और उत्पादन पर रोक लगाने की तैयारी भी शुरू कर दी है।
प्रशासनिक पेंच
एक नियामक विशेषज्ञ ने बताया कि तकनीकी रूप से, औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत राज्य सरकारों को निर्देश देने का अधिकार स्वास्थ्य मंत्रालय के पास है, न कि CDSCO के पास।
“इसलिए, कानूनी रूप से यह निर्देश मंत्रालय की ओर से आना चाहिए था, न कि सीडीएससीओ से।”
इस नए आदेश ने देश के फार्मा सेक्टर में हड़कंप मचा दिया है।
जहाँ एक ओर सरकार इसे “गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेस की सख्त क्रांति” बता रही है, वहीं दूसरी ओर छोटे निर्माताओं में अस्तित्व का संकट गहराता दिख रहा है।
आने वाले महीनों में तय होगा कि यह कदम ‘क्वालिटी क्रांति’ बनता है या ‘SME संकट’।



