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July 19, 2025 Vol 20

रेड लाइन एंटीबायोटिक्स के लिए अब डॉक्टर का पर्चा अनिवार्य – स्वास्थ्य मंत्रालय ने शुरू किया जागरूकता अभियान

रेड लाइन एंटीबायोटिक्स के लिए अब डॉक्टर का पर्चा अनिवार्य – स्वास्थ्य मंत्रालय ने शुरू किया जागरूकता अभियान

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नई दिल्ली।  स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने देशभर में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। इसके तहत मंत्रालय ने ‘रेड लाइन’ अभियान को सक्रिय रूप से लागू करने का निर्णय लिया है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance – AMR) की गंभीर चुनौती से निपटना और जनता को एंटीबायोटिक्स के ज़िम्मेदाराना इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना है।

क्या है ‘रेड लाइन’ अभियान?

रेड लाइन अभियान के तहत जिन दवाओं पर लाल रंग की रेखा लगी होती है – वे दवाएं गंभीर संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल होती हैं और इनका बिना डॉक्टर की सलाह के सेवन करना हानिकारक हो सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि अब इन रेड लाइन वाली दवाओं को डॉक्टर के पर्चे के बिना न तो खरीदा जा सकता है और न ही बेचा जाना चाहिए

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क्यों उठाया गया यह कदम?

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में बिना जरूरत एंटीबायोटिक्स लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, जिससे बैक्टीरिया और वायरस इन दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो रहे हैं। यह प्रतिरोध भविष्य में आम संक्रमणों को भी लाइलाज बना सकता है। यदि यह चलन यूं ही चलता रहा, तो छोटी बीमारियों के लिए भी मजबूत दवाएं बेअसर हो सकती हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय की अपील:

  • जनता से अपील की गई है कि वे किसी भी रेड लाइन वाली दवा का इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह से ही करें

  • फार्मेसियों और दवा दुकानों को निर्देश दिए गए हैं कि वे रेड लाइन दवाएं केवल पर्चे के आधार पर ही बेचें

  • चिकित्सकों को कहा गया है कि वे रेड लाइन दवाएं लिखते समय यह ज़रूर समझाएं कि दवा क्यों दी जा रही है और इसे कैसे और कितने समय तक लेना है।

किन दवाओं पर होती है रेड लाइन?

रेड लाइन आमतौर पर अमोक्सिसिलिन, सिप्रोफ्लॉक्सासिन, एजिथ्रोमायसिन, सेफ्ट्रियाक्सोन जैसी दवाओं पर होती है। ये दवाएं शक्तिशाली एंटीबायोटिक्स होती हैं और इनका अनियंत्रित या अधूरा सेवन रोगाणु प्रतिरोध को जन्म देता है।

AMR से खतरे:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पहले ही चेतावनी दे चुका है कि 2040 तक एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण हर साल लाखों मौतें हो सकती हैं

  • भारत जैसे विकासशील देशों में स्वच्छता की चुनौतियां, खुद इलाज करने की प्रवृत्ति और जागरूकता की कमी इस खतरे को और बढ़ा रही हैं।


 

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