
राजस्थान उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय: दवा में (Dissolution Test) विफल होनामामूली दोष
राजस्थान उच्च न्यायालय ने औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत दर्ज एक मामले में महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि किसी दवा में सक्रिय घटक (Active Ingredient) निर्धारित मानक सीमा के भीतर है, तो विघटन परीक्षण (Dissolution Test) में विफल होना केवल मामूली दोष माना जाएगा और इसके लिए अभियोजन की आवश्यकता नहीं होगी।
मामले की पृष्ठभूमि
वर्ष 2017 में दर्ज की गई शिकायत में एक फार्मास्युटिकल कंपनी पर आरोप लगाया गया था कि उनकी एक दवा का नमूना विघटन परीक्षण में विफल हो गया। इसके आधार पर संबंधित अधिकारियों ने कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी। कंपनी ने इस शिकायत को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।
न्यायालय का निर्णय
राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि:
- संबंधित दवा में सक्रिय घटक निर्धारित सीमा के भीतर था।
- केवल विघटन परीक्षण में मामूली असफलता को गंभीर उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
- सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार, इस प्रकार की मामूली खामियों के लिए अभियोजन की आवश्यकता नहीं होती।
प्रभाव और निहितार्थ
इस निर्णय का फार्मास्युटिकल उद्योग पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। कई बार तकनीकी कारणों से विघटन परीक्षण में असफलता सामने आती है, लेकिन यदि सक्रिय घटक मानकों के अनुरूप हो, तो इसे गंभीर अपराध नहीं माना जाना चाहिए। यह फैसला भविष्य में इस तरह के मामलों के लिए एक मिसाल बनेगा और फार्मास्युटिकल कंपनियों को अनावश्यक कानूनी उलझनों से बचाने में सहायक होगा।
निष्कर्ष
राजस्थान उच्च न्यायालय का यह निर्णय न्यायिक विवेक और वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर लिया गया एक संतुलित फैसला है। यह औषधि नियामकों और उद्योग के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि मामूली तकनीकी खामियों को आधार बनाकर कठोर कानूनी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।