
दवा नियमन में सुधार की ओर एक बड़ा कदम: पैनल की सिफारिशें
देश में दवा नियमन के स्तर को मजबूत करने के लिए संसद की स्थायी समिति ने एक नई पहल की सिफारिश की है, जिससे भारत का औषधि नियामक ढांचा अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो सके।
दवा नियमन में सुधार की ज़रूरत क्यों?
भारत को “दुनिया की फार्मेसी” कहा जाता है, लेकिन विभिन्न राज्यों में दवा नियमन की प्रक्रियाओं में एकरूपता नहीं है। इसके चलते दवाओं की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता पर सवाल उठते रहे हैं। इस चुनौती को देखते हुए, समिति ने देशभर में एक समान, उच्च-स्तरीय दवा नियामक प्रणाली विकसित करने की सिफारिश की है।
परिपक्वता संवर्धन कार्यक्रम: कदम दर कदम सुधार
समिति ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की वैक्सीन बेंचमार्किंग प्रक्रिया के आधार पर एक “परिपक्वता संवर्धन कार्यक्रम” शुरू करने की सिफारिश की है। इस कार्यक्रम के तहत:
1. राज्यों का ऑडिट:दवाओं, एपीआई (Active Pharmaceutical Ingredients), और फॉर्मूलेशन की गुणवत्ता पर केंद्रीय टीम द्वारा नियमित ऑडिट किया जाएगा।
2. लक्ष्य आधारित सुधार:ऑडिट के नतीजों के आधार पर हर राज्य के लिए विशेष सुधार योजनाएँ बनाई जाएंगी।
3. निरंतर प्रशिक्षण: राज्य औषधि नियामकों को नियमित प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिससे उनकी क्षमताएं आधुनिक मानकों के अनुरूप बन सकें।
4. एकीकृत ऑनलाइन सिस्टम:राष्ट्रीय औषधि लाइसेंसिंग प्रणाली (ONLDS) को सुदृढ़ करके पूरे देश में दवा नियमन को ऑनलाइन और पारदर्शी बनाया जाएगा।
राज्यों की भागीदारी और वित्तीय प्रबंधन
राज्य औषधि नियामक प्रणाली (SSDRS) योजना के तहत राज्यों को फंड आवंटित किया जाता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसका पूरा उपयोग नहीं हो सका। पैनल ने सिफारिश की है कि केंद्र सरकार राज्यों के साथ मिलकर जागरूकता अभियान चलाए और फंड के उचित उपयोग को सुनिश्चित करे।
आगे की राह
यदि ये सिफारिशें लागू होती हैं, तो भारत न सिर्फ दवा गुणवत्ता में नए मानक स्थापित करेगा, बल्कि वैश्विक औषधि क्षेत्र में अपनी अग्रणी भूमिका को और मजबूत करेगा। यह पहल दवा निर्माण में पारदर्शिता लाने, मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और भारत को दवा निर्यात में विश्वसनीयता प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।
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