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July 19, 2025 Vol 20

मलेरिया नियंत्रण घोटाला: 52 रुपये की मच्छरदानी 237 रुपये में बेची, CBI ने दर्ज की प्राथमिकी

मलेरिया नियंत्रण घोटाला: 52 रुपये की मच्छरदानी 237 रुपये में बेची, CBI ने दर्ज की प्राथमिकी

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कुल 29 करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट, उत्पादन क्षमता के बिना मिला ऑर्डर

नई दिल्ली,  मलेरिया नियंत्रण योजना के तहत सरकार को दी गई मच्छरदानियों की खरीद में बड़ा घोटाला सामने आया है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान कीटनाशक लिमिटेड (HIL) पर आरोप है कि उसने सिर्फ 49-52 रुपये में मिलने वाली मच्छरदानियां सरकार को 228 से 237 रुपये प्रति यूनिट के दाम पर बेचीं। मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने अब प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।

मामला क्या है?

CBI की एफआईआर के अनुसार, 2021-22 में HIL को केंद्रीय चिकित्सा सेवा समाज (CMSS) की ओर से 11 लाख से अधिक कीटनाशक-युक्त मच्छरदानियों की आपूर्ति का ठेका मिला। यह कॉन्ट्रैक्ट 29 करोड़ रुपये का था। HIL इस टेंडर में एकमात्र बोलीदाता थी और उसे सीधे यह ऑर्डर दे दिया गया।

कीमतों में बड़ा अंतर

CBI की प्रारंभिक जांच में सामने आया कि मच्छरदानी की मूल कीमत 49 से 52 रुपये के बीच थी।

  • वास्तविक निर्माता: वीकेए पॉलिमर्स नाम की कंपनी ने इन्हें जेपी पॉलिमर्स को इस दर पर बेचा।

  • बिचौलिए स्तर पर: जेपी पॉलिमर्स से HIL के पास पहुंचते-पहुंचते प्रति मच्छरदानी की कीमत 87-90 रुपये हो गई।

  • सरकार को बिलिंग: HIL ने CMSS को वही मच्छरदानियां 228-237 रुपये प्रति यूनिट पर बेचीं।

उत्पादन क्षमता ही नहीं थी

CBI ने अपनी एफआईआर में यह भी बताया है कि HIL के पास खुद की उत्पादन क्षमता नहीं थी। इसके बावजूद, कंपनी ने पूरे प्रोजेक्ट के लिए अकेले बोली लगाई और कॉन्ट्रैक्ट जीत लिया। इससे सवाल उठता है कि बिना उत्पादन सुविधा वाली कंपनी को सरकार ने ठेका कैसे दे दिया?

अब क्या?

CBI ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। जल्द ही संबंधित अधिकारियों और कंपनियों से पूछताछ की जा सकती है। घोटाले की रकम करीब 29 करोड़ रुपये आंकी गई है, जिसमें सरकारी धन का दुरुपयोग और कीमतों में अनावश्यक बढ़ोतरी मुख्य मुद्दे हैं।


यह मामला क्यों गंभीर है?

  • यह घोटाला स्वास्थ्य सुरक्षा योजना से जुड़ा है, जिसका उद्देश्य मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारी को रोकना था।

  • सरकारी धन का दुरुपयोग और एक ही बोलीदाता को बिना प्रतिस्पर्धा के ठेका देना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।

  • अगर समय रहते ऐसे घोटाले न रोके जाएं तो जन स्वास्थ्य योजनाएं पूरी तरह प्रभावित हो सकती हैं

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