खांसी की दवा बनी बच्चों की मौत का कारण: एमपी-राजस्थान में 7 मासूमों की गई जान, सरकार ने लगाई रोक
भोपाल/जयपुर। मध्य प्रदेश और राजस्थान में खांसी-जुकाम के इलाज के लिए दी जाने वाली दवा अब मासूम बच्चों की जान लेने लगी है। बीते एक महीने में दोनों राज्यों में अब तक 7 बच्चों की संदिग्ध मौत हो चुकी है। इनमें से 6 मौतें मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में दर्ज हुईं, जबकि राजस्थान के सीकर जिले में एक मासूम की जान गई। शुरुआती जांच में खांसी की दवा में हानिकारक तत्व डायएथिलीन ग्लायकॉल होने की आशंका जताई जा रही है। फिलहाल दोनों राज्यों में संबंधित सिरप की बिक्री और सप्लाई पर रोक लगा दी गई है।
छिंदवाड़ा में सबसे ज्यादा मौतें, बच्चों की किडनी फेल
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में अगस्त-सितंबर के दौरान अचानक बच्चों में खांसी-बुखार और सर्दी-जुकाम के मामले बढ़े। इलाज के लिए अस्पताल पहुंचने पर बच्चों को खांसी की दवा दी गई। दवा लेने के कुछ दिन बाद ही कई बच्चों की हालत बिगड़ने लगी।
सीएमएचओ डॉ. नरेश गुन्नाडे के मुताबिक 24-25 अगस्त के बाद ऐसे मामलों में इजाफा हुआ। बच्चों का बुखार उतर नहीं रहा था और उन्हें पेशाब करने में कठिनाई हो रही थी। कई बच्चों को नागपुर रेफर किया गया, जहां चार ने दम तोड़ दिया। बाद में हुई बायोप्सी रिपोर्ट ने चौंकाने वाला खुलासा किया – बच्चों की किडनी सिरप से बुरी तरह डैमेज हो चुकी थी।
प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई करते हुए कोल्ड्रिफ कफ सिरप की बिक्री पर रोक लगाई। वहीं दिल्ली, भोपाल और पुणे से आई विशेषज्ञ टीमों ने बच्चों और पानी के सैंपल की जांच शुरू कर दी। अभी तक किसी वायरस या बैक्टीरिया की पुष्टि नहीं हुई है।
राजस्थान में भी खौफ, सीकर में 5 साल के मासूम की मौत
राजस्थान के सीकर जिले में 5 वर्षीय नितियांस को सरकारी अस्पताल में खांसी का सिरप दिया गया। परिजनों के अनुसार रात 11:30 बजे सिरप पिलाया गया, लेकिन रात 3:30 बजे उसकी तबीयत बिगड़ने लगी। हिचकियां आने लगीं और सुबह तक वह जिंदगी की जंग हार गया।
भरतपुर और बांसवाड़ा जिलों में भी बच्चों की तबीयत बिगड़ने के मामले सामने आए हैं। इतना ही नहीं, भरतपुर के एक अस्पताल में तैनात डॉक्टर ने भी यही सिरप पिया तो उसकी तबीयत खराब हो गई।
राजस्थान ड्रग कंट्रोलर अजय फाटक ने बताया कि बच्चों को दी गई दवा डेक्सट्रोमेथॉरफन हाइड्रोब्रोमाइड सिरप थी, जिसे जयपुर की कायसन्स फार्मा कंपनी ने सप्लाई किया था। एहतियात के तौर पर राजस्थान मेडिकल सर्विस कॉरपोरेशन (आरएमएससीएल) ने इस दवा की सभी बैच की सप्लाई पर रोक लगा दी है।
जांच में कई खामियां उजागर
दोनों राज्यों में स्वास्थ्य विभागों ने पानी और खून के हजारों सैंपल लेकर जांच कराई। छिंदवाड़ा में अब तक 3 हजार ब्लड सैंपल पुणे के वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट भेजे जा चुके हैं। वहीं राजस्थान में दवा के सैंपल लैब भेजे गए हैं।
हालांकि, अब तक किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंचा नहीं गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि दवा में मौजूद डायएथिलीन ग्लायकॉल (DEG) जैसे जहरीले तत्व बच्चों के शरीर में पहुंचकर किडनी फेल और मल्टी ऑर्गन डैमेज का कारण बन सकते हैं। यही तत्व 2022 में गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में भी बच्चों की मौत की वजह बन चुका है।
प्रशासनिक लापरवाही पर उठे सवाल
इन घटनाओं ने प्रशासन और दवा नियंत्रण तंत्र की पोल खोल दी है। सवाल यह है कि जो दवा सीधे बच्चों को दी जा रही थी, उसकी क्वालिटी चेक क्यों नहीं हुई? दवा कंपनियों की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स की मॉनिटरिंग क्यों नहीं की गई?
राजस्थान और मध्य प्रदेश – दोनों जगहें सरकारी सप्लाई की दवाओं से मौतें हुईं। इससे साफ है कि सरकारी सिस्टम ने निगरानी में बड़ी चूक की है। अब सरकारों ने दवा पर रोक लगाकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया, लेकिन जिन परिवारों ने अपने मासूम खो दिए, उनके दर्द का जवाब किसी के पास नहीं है।
पीड़ित परिवारों का आक्रोश
सीकर में मृत बच्चे की मां खुशी का कहना है –
“मैं तो बस खांसी की दवा लेकर आई थी ताकि बेटा जल्दी ठीक हो जाए, पर वही दवा उसकी मौत का कारण बन गई।”
छिंदवाड़ा में भी परिजन आक्रोशित हैं। एक पिता ने कहा – “हम सरकार और अस्पताल पर भरोसा करके इलाज कराने गए थे। अब हमारा बच्चा ही नहीं रहा। कौन देगा हमें उसका जवाब?”
फिलहाल स्थिति
दोनों राज्यों में स्वास्थ्य विभाग ने सभी सरकारी अस्पतालों को संदिग्ध दवा का इस्तेमाल रोकने का निर्देश दिया है। जांच रिपोर्ट आने तक सप्लाई पूरी तरह रोक दी गई है। केंद्र और राज्य की संयुक्त टीमें जांच में जुटी हैं।
हालांकि, असली सवाल यह है कि कब तक बच्चों की जान दवा घोटालों और लापरवाही की भेंट चढ़ती रहेगी?