
हिमाचल प्रदेश में दवा गुणवत्ता पर सवाल: दो वर्षों में 1,471 नमूने फेल, छह कंपनियों पर कार्रवाई
हिमाचल प्रदेश :- हिमाचल प्रदेश में निर्मित दवाओं की गुणवत्ता को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। प्रदेश के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री धनी राम शांडिल ने विधानसभा में जानकारी दी कि पिछले दो वर्षों में, 25 फरवरी 2025 तक, राज्य में तैयार की गई दवाओं के कुल 1,471 नमूने गुणवत्ता परीक्षण में फेल हो गए। इसके चलते छह दवा निर्माण कंपनियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की गई है।
जिलावार स्थिति:
प्रदेश के विभिन्न जिलों में दवा निर्माण की स्थिति चिंताजनक रही, खासकर सोलन और सिरमौर में। मंत्री शांडिल ने कांग्रेस विधायक केवल सिंह पठानिया के सवाल के जवाब में बताया कि:
- कांगड़ा: 33 नमूने गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरे।
- सिरमौर: 302 नमूने फेल हुए।
- सोलन: सबसे अधिक 1,190 नमूने घटिया पाए गए।
- ऊना: 46 नमूनों की गुणवत्ता असंतोषजनक रही।
कार्रवाई के तहत उठाए गए कदम:
मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने कई सख्त कदम उठाए हैं:
- दोषी कंपनियों की उत्पाद अनुमतियों को छह महीने तक के लिए निलंबित कर दिया गया है।
- कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं, ताकि वे अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकें।
- कुछ मामलों में लाइसेंस रद्द करने या कंपनियों को लाइसेंस सरेंडर करने का आदेश दिया गया है।
- घटिया दवाओं को बाजार में जाने से रोकने के लिए उत्पाद जब्त किए गए हैं।
- कई मामलों में अभी जांच जारी है, और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के संकेत दिए गए हैं।
दवा उद्योग पर असर:
हिमाचल प्रदेश देश में फार्मास्युटिकल हब के रूप में जाना जाता है, खासकर बीबीएन (बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़) क्षेत्र को देश की फार्मा राजधानी कहा जाता है। ऐसे में दवाओं के नमूने फेल होने से न केवल प्रदेश की साख पर असर पड़ा है, बल्कि यहां कार्यरत सैकड़ों दवा कंपनियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठे हैं।
विपक्ष का हमला:
इस खुलासे के बाद प्रदेश की राजनीति भी गर्मा गई है। विपक्ष ने सरकार पर निगरानी में लापरवाही का आरोप लगाते हुए दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। कांग्रेस विधायक केवल सिंह पठानिया ने सवाल उठाया कि अगर नियमित निरीक्षण होते, तो इतनी बड़ी संख्या में दवाएं फेल नहीं होतीं।
जनता की चिंता:
प्रदेश में निर्मित दवाएं न केवल हिमाचल बल्कि देशभर में सप्लाई की जाती हैं। ऐसे में आम जनता की सेहत पर खतरा मंडराता नजर आ रहा है। इस खुलासे ने मरीजों के साथ-साथ डॉक्टरों और फार्मासिस्टों को भी चिंता में डाल दिया है।
आगे क्या?
सरकार ने आश्वासन दिया है कि दोषी कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी और भविष्य में ऐसे मामलों को रोकने के लिए क्वालिटी कंट्रोल सिस्टम को मजबूत किया जाएगा। साथ ही, औचक निरीक्षण बढ़ाए जाएंगे और दोषी पाए जाने पर लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई तेज की जाएगी।
यह मामला न केवल प्रदेश के दवा उद्योग बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए भी एक बड़ा सबक है। अब देखना होगा कि सरकार इस पर क्या ठोस कदम उठाती है और प्रदेश की फार्मा इंडस्ट्री अपनी साख कैसे बचाती है।