हाईकोर्ट ने रद्द किए दवा निर्माण पर रोक आदेश, फार्मा उद्योग को बड़ी राहत

हाईकोर्ट ने रद्द किए दवा निर्माण पर रोक आदेश, फार्मा उद्योग को बड़ी राहत

नियामकों की मनमानी पर अदालत की सख्ती, उचित प्रक्रिया का पालन अनिवार्य बताया

मुंबई,   दवा उद्योग और एमएसएमई को बड़ी राहत देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा जारी वे आदेश रद्द कर दिए हैं जिनमें दो दवा कंपनियों—नेशनल फार्मास्युटिकल्स और एवियो फार्मास्युटिकल्स—को अपने सभी उत्पादन कार्य तत्काल रोकने के लिए बाध्य किया गया था। अदालत ने माना कि नियामकों ने “वैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन” किया और कंपनियों को “निष्पक्ष सुनवाई” का अधिकार नहीं दिया।

अदालत की टिप्पणी

न्यायमूर्ति एनजे जमादार ने कहा कि औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के अनुसार किसी भी कंपनी का लाइसेंस निलंबित या रद्द करने से पहले उसका पक्ष सुना जाना अनिवार्य है। यहाँ नियामकों ने बिना कारण बताओ नोटिस दिए ही उत्पादन बंद करने का आदेश पारित कर दिया।
अदालत ने स्पष्ट किया—

“जन स्वास्थ्य संबंधी मामलों में भी, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना अनिवार्य है। मनमानी कार्रवाई कानून के अनुरूप नहीं हो सकती।”

विवाद की पृष्ठभूमि

7 फरवरी 2025 को स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (DGHS) ने एक एडवाइजरी जारी की थी, जिसमें दर्द निवारक और मांसपेशियों को आराम देने वाली टेपेंटाडोल और कैरीसोप्रोडोल युक्त दवाओं के दुरुपयोग की रिपोर्टों का हवाला देते हुए इनके निर्माण और निर्यात पर तत्काल रोक लगाने की बात कही गई थी।
इसके बाद, 12 फरवरी को एफडीए और सीडीएससीओ ने दोनों कंपनियों के सभी विनिर्माण कार्यों पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया। जबकि कंपनियों का कहना था कि उन्होंने विवादित उत्पादों के लाइसेंस पहले ही सरेंडर कर दिए थे और अनुपालन रिपोर्ट भी सौंप दी थी। इसके बावजूद, उनका पूरा कारोबार बंद करा दिया गया, जो कि प्राकृतिक न्याय और वैधानिक प्रक्रिया के खिलाफ है।

नियामकों का पक्ष

एफडीए और सीडीएससीओ ने अदालत में दलील दी कि निरीक्षणों में गंभीर खामियां सामने आई थीं और दवाओं के अवैध दुरुपयोग ने एक आपात स्थिति पैदा कर दी थी। इसीलिए “तत्काल हस्तक्षेप” ज़रूरी था। उनका कहना था कि यह आदेश केवल इन दो कंपनियों तक सीमित नहीं था, बल्कि उस संयोजन के सभी निर्माताओं पर लागू था।

अदालत का फैसला

अदालत ने नियामकों की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि कंपनियों ने विवादित लाइसेंस पहले ही सरेंडर कर दिए थे, इसलिए उनकी सभी गतिविधियों को रोकना अत्यधिक और अनुचित कदम था। अदालत ने फरवरी और जुलाई 2025 में पारित उन सभी आदेशों को रद्द कर दिया जिनमें रोक को बरकरार रखा गया था। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि यदि नियामक उचित प्रक्रिया का पालन करें तो वे भविष्य में आवश्यक कार्रवाई कर सकते हैं।

उद्योग जगत की राहत

यह फैसला दवा उद्योग, खासकर एमएसएमई इकाइयों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है। हाल ही में छोटी दवा कंपनियों ने पीएमओ को पत्र लिखकर चेतावनी दी थी कि नए नियमों के चलते हजारों इकाइयाँ बंद हो सकती हैं। पीएमओ ने इसके बाद एमएसएमई मंत्रालय को फार्मा क्षेत्र में संकट की जांच करने के निर्देश दिए थे। अदालत का यह निर्णय न केवल नियामकीय अतिक्रमण पर रोक लगाता है बल्कि उद्योग के आत्मविश्वास को भी मजबूत करता है।

बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला फार्मा सेक्टर में “कानून के शासन” और “प्राकृतिक न्याय” की महत्ता को रेखांकित करता है। जन स्वास्थ्य की सुरक्षा जितनी अहम है, उतना ही ज़रूरी यह भी है कि प्रशासनिक कदम पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ उठाए जाएँ।

अब कंपनियाँ टेपेंटाडोल-कैरीसोप्रोडोल संयोजनों को छोड़कर अन्य सभी दवाओं का उत्पादन फिर से शुरू कर सकेंगी।


 

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