हाईकोर्ट का सख्त रुख—लाइसेंस बगैर दवा क्लिनिक रैक मे रखना भी ‘बिक्री’ के बराबर अपराध
“क्लिनिक की रैक में रखी दवाइयां भी बिक्री का प्रस्ताव मानी जाएंगी”
शिमला। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में स्पष्ट किया है कि यदि किसी क्लिनिक या प्रतिष्ठान में वैध लाइसेंस के बिना एलोपैथिक दवाइयाँ रखी जाती हैं, तो इसे केवल कब्जा नहीं बल्कि “बिक्री के लिए प्रस्ताव” माना जाएगा। अदालत ने कहा कि यह औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 27 का सीधा उल्लंघन है और इसके तहत दोषसिद्धि अनिवार्य है।
मामला: मैक्लोडगंज का मानव हेल्थ क्लिनिक
जून 2001 में औषधि निरीक्षक ने मैक्लोडगंज स्थित मेसर्स मानव हेल्थ क्लिनिक का निरीक्षण किया। उस समय क्लिनिक का मालिक मौजूद था और रैक पर कई तरह की एलोपैथिक दवाएँ प्रदर्शित की गई थीं। जब वैध लाइसेंस या प्रमाण पत्र मांगा गया, तो आरोपी कोई दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं कर पाया। निरीक्षक ने दवाइयों को जब्त कर आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज की।
निचली अदालत का फैसला
ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए कहा कि दवाइयाँ क्लिनिक में रैक पर रखी होना ही बिक्री की मंशा को दर्शाता है। अदालत ने उसे एक महीने की साधारण कैद और ₹5000 जुर्माने की सजा सुनाई।
हाईकोर्ट ने किया स्पष्ट
आरोपी ने फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि औषधि निरीक्षक यह साबित नहीं कर पाए कि दवाएँ बिक्री के लिए थीं। मगर, न्यायमूर्ति राकेश कैंथला ने साफ कहा: “दुकान या क्लिनिक की रैक में दवाइयाँ रखना ही बिक्री का प्रस्ताव है। यह निषिद्ध है और कानून का उल्लंघन है।”
जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ अस्वीकार्य
हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि बिना लाइसेंस के एलोपैथिक दवाइयों का भंडारण सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है। अदालत ने कहा कि: “ऐसे अपराधों के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अदालतों को ऐसी सजा देनी चाहिए जो लोगों को लाइसेंस के बिना दवाइयाँ स्टॉक करने और दूसरों की जिंदगी से खेलने से रोके।”
इस आदेश ने साफ कर दिया है कि बिना लाइसेंस एलोपैथिक दवाइयाँ रखना सिर्फ तकनीकी गलती नहीं, बल्कि गंभीर अपराध है। यह फैसला मेडिकल पेशे में पारदर्शिता और मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।