
ग्रे मार्केट के जाल में फंसी फार्मा इंडस्ट्री: नकली दवाओं पर बिहार डीसी का कड़ा रुख
देश में नकली दवाओं का कारोबार तेजी से पैर पसार रहा है, और इसके पीछे ग्रे मार्केटिंग कंपनियों की अहम भूमिका सामने आई है। बिहार के औषधि नियंत्रक नित्यानंद किशलोया ने खुलासा किया कि कुछ मार्केटिंग कंपनियां नियामक प्राधिकरणों द्वारा जारी लाइसेंस का दुरुपयोग कर रही हैं और घटिया गुणवत्ता वाली दवाओं को अनधिकृत चैनलों के माध्यम से बाजार में पहुंचा रही हैं।
कठोर निरीक्षण की पहल
पश्चिम बंगाल में नकली दवाओं के पकड़े जाने के बाद बिहार औषधि नियंत्रण विभाग ने पूरे राज्य में निरीक्षण प्रक्रिया को सख्त कर दिया है। पटना, सासाराम, रोहतास और दरभंगा में थोक विक्रेताओं के गोदामों पर औचक छापेमारी की गई है, और यह अभियान आगे भी जारी रहेगा।
नित्यानंद किशलोया ने बताया, “बिहार से पश्चिम बंगाल में नकली दवाओं के पहुंचने की खबर के बाद थोक और खुदरा विक्रेताओं के साथ-साथ विनिर्माण कंपनियों में भी सख्त जांच शुरू कर दी गई है। दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”
ग्रे मार्केटिंग का जाल
फार्मा इंडस्ट्री में ग्रे मार्केट का नेटवर्क बेहद जटिल है। बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में नकली दवाओं के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। किशलोया ने बताया कि नकली दवाएं बिहार में नहीं बनाई जातीं, लेकिन कुछ मार्केटिंग कंपनियां गुजरात, मुंबई और दिल्ली से दवाएं बनवाकर बिहार और अन्य राज्यों के औषधि नियंत्रण प्राधिकरणों द्वारा जारी लाइसेंस का दुरुपयोग कर दूसरे राज्यों में दवाएं भेज रही हैं।
उन्होंने कहा कि पूरे भारत में ऐसी कई मार्केटिंग कंपनियां काम कर रही हैं, जिनके मूल केंद्र के बारे में कोई नहीं जानता। बिहार औषधि नियंत्रण विभाग इन दवा माफियाओं को पकड़ने के लिए अपने स्तर पर पूरी कोशिश कर रहा है।
झारखंड का नजरिया: सख्त जांच की मांग
झारखंड औषधि नियंत्रण विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. सुचित कुमार ने कहा कि नकली और मिलावटी दवाओं का पता लगाने के लिए सभी राज्यों में कठोर निरीक्षण की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि ज़्यादातर नकली दवाएं फूड सप्लीमेंट बनाने वाली कंपनियों में गुप्त रूप से तैयार की जाती हैं। चूंकि ड्रग इंस्पेक्टरों को इन कंपनियों का निरीक्षण करने का अधिकार नहीं है, इसलिए ये कंपनियां आसानी से बच निकलती हैं।
डॉ. सुचित के अनुसार, निरीक्षण के दौरान यह पता चला है कि ज्यादातर नकली दवाएं पश्चिम बंगाल में बनाई जाती हैं, लेकिन उन्हें बेचने वाले विपणनकर्ता दूसरे राज्यों के होते हैं।
मिलावट पर रोक की आवश्यकता
झारखंड डीसीए के संयुक्त निदेशक सुमंत कुमार तिवारी ने कहा, “उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल घनी आबादी वाले राज्य हैं, जहां दवाओं की खपत बहुत अधिक है। लेकिन इन राज्यों में फार्मा कंपनियां बेहद कम हैं, जिससे यहां दवाएं मुख्य रूप से पश्चिमी और दक्षिणी भारत से आती हैं। इसी वितरण चैनल में कुछ बेईमान लोग अनैतिक कारोबार को अंजाम दे रहे हैं।”
आगे की राह: कड़ा नियंत्रण जरूरी
बिहार और झारखंड के औषधि नियंत्रकों का मानना है कि ग्रे मार्केट के इस नेटवर्क पर नकेल कसने के लिए राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे। इसके लिए पूरे देश में औचक निरीक्षण, लाइसेंस की कड़ी निगरानी और दोषियों पर सख्त कार्रवाई जैसे उपाय आवश्यक हैं।
नकली दवाओं के इस बढ़ते कारोबार पर लगाम लगाने के लिए बिहार और झारखंड ने जिस सख्ती के संकेत दिए हैं, उससे उम्मीद है कि आने वाले समय में दवा बाजार में पारदर्शिता और गुणवत्ता को प्राथमिकता दी जाएगी।