नकली और नशीली दवाओं पर नकेल कसने के लिए एकजुट हुए पांच उत्तरी राज्य

नकली और नशीली दवाओं पर नकेल कसने के लिए एकजुट हुए पांच उत्तरी राज्य

चंडीगढ़,     नकली और मन:प्रभावी दवाओं के बढ़ते खतरे ने अब उत्तरी भारत की सरकारों को गहरी चिंता में डाल दिया है। इसी पृष्ठभूमि में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और पंजाब के औषधि नियंत्रकों ने चंडीगढ़ में 5 सितंबर को एक ऐतिहासिक बैठक कर अंतरराज्यीय समिति गठित करने का बड़ा फैसला लिया। इस कदम को न सिर्फ़ दवा बाज़ार को साफ-सुथरा बनाने बल्कि युवाओं को नशे की लत से बचाने के लिए मील का पत्थर माना जा रहा है।

हिमाचल ने बढ़ाया पहल का कदम

हिमाचल प्रदेश के औषधि नियंत्रण प्रशासन (DCA HP) की मेज़बानी में हिमाचल भवन में हुई इस बैठक की अगुवाई राज्य औषधि नियंत्रक डॉ. मनीष कपूर ने की। उन्होंने साफ़ कहा कि नकली दवाओं और नशीली दवाओं के रैकेट की जड़ें कई राज्यों में फैली हुई हैं और इन्हें खत्म करने के लिए सीमाओं से परे समन्वय बेहद ज़रूरी है।

इस बैठक में जम्मू-कश्मीर की औषधि नियंत्रक लोतिका खजूरिया, पंजाब के औषधि नियंत्रक संजीव गर्ग, हरियाणा के औषधि नियंत्रक ललित कुमार गोयल, उत्तराखंड के औषधि नियंत्रक ताजबर सिंह और उत्तर प्रदेश के प्रतिनिधि अखिलेश जैन भी मौजूद रहे।

बनेगी अंतरराज्यीय समिति

हरियाणा के नए औषधि नियंत्रक ललित कुमार गोयल के प्रस्ताव पर सभी राज्यों ने एक अंतरराज्यीय समन्वय समिति बनाने पर सहमति जताई। यह समिति न केवल खुफिया सूचनाओं का साझा तंत्र तैयार करेगी बल्कि संयुक्त छापेमारी और विशेष अभियान भी चलाएगी। इसका मक़सद ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट और एनडीपीएस एक्ट को सख्ती से लागू करना है, ताकि सीमाओं का फायदा उठाकर काम करने वाले अपराधी कहीं भी पनप न सकें।

“वन नेशन-वन पोर्टल” की मांग

बैठक में एक अहम प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजने का निर्णय लिया गया। इसमें “वन नेशन-वन डेडिकेटेड पोर्टल” की मांग की गई है। यह पोर्टल निर्माण से लेकर रिटेल स्तर तक मन:प्रभावी दवाओं की निगरानी करेगा। इसमें दवा नियामक, पुलिस, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो और आबकारी विभाग जैसी सभी एजेंसियों को लॉगइन की सुविधा होगी। अधिकारी मानते हैं कि इस डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म से अवैध सप्लाई चेन पर नकेल कसना आसान होगा।

संयुक्त निरीक्षण और SOP

बैठक में यह भी तय हुआ कि सभी राज्य एक साझा मानक प्रक्रिया (SOP) तैयार करेंगे, जिसके तहत नकली और नशीली दवाओं की आवाजाही की जानकारी तुरंत साझा होगी। साथ ही, मन:प्रभावी दवाओं का लाइसेंस रखने वाली कंपनियों का संयुक्त औचक निरीक्षण किया जाएगा। इन निरीक्षणों में मैन्युफैक्चरिंग, थोक और खुदरा स्तर पर गतिविधियों की निगरानी की जाएगी।

डॉ. कपूर ने कहा, “हम खुफिया जानकारी आधारित लक्षित निरीक्षण करेंगे। यह न केवल अवैध गतिविधियों को रोकेंगे बल्कि कंपनियों को अनुपालन के लिए बाध्य भी करेंगे।”

बहु-एजेंसी सहयोग पर जोर

बैठक में ऑनलाइन जुड़कर कई वरिष्ठ अधिकारियों ने भी अपनी राय रखी। इनमें हिमाचल के स्वास्थ्य सुरक्षा निदेशक जितेंद्र संजीता, हरियाणा FDA आयुक्त मनोज यादव, एनसीबी हरियाणा के एसपी मोहित हांडा और सीआईडी के एडीजीपी ज्ञानेश्वर सिंह शामिल थे। सभी ने माना कि यह समस्या अब सिर्फ़ एक राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय चुनौती है।

युवाओं को नशे से बचाने की कवायद

बैठक का साझा संदेश साफ़ था – नकली और मनोविकृति दवाओं का धंधा युवाओं को बर्बादी की ओर धकेल रहा है। ऐसे में राज्यों का मिलकर काम करना बेहद ज़रूरी है। इस पहल को एक मॉडल फ्रेमवर्क की तरह देखा जा रहा है, जिसे बाद में पूरे देश में लागू किया जा सकता है।

ललित गोयल ने कहा, “यदि यह पहल सफल होती है तो देश के अन्य हिस्सों में भी इसे लागू किया जाएगा। इससे दवा आपूर्ति श्रृंखला सुरक्षित होगी और लोगों का भरोसा मजबूत होगा।”

पांच उत्तरी राज्यों का यह ऐतिहासिक गठबंधन न केवल दवा बाजार में पारदर्शिता लाने का प्रयास है बल्कि यह युवाओं को नशे के दलदल से बाहर निकालने की ठोस योजना भी है। अंतरराज्यीय सहयोग, डिजिटल तकनीक और सख्त प्रवर्तन के मेल से आने वाले समय में नकली और नशीली दवाओं के कारोबार पर बड़ा प्रहार होने की उम्मीद जताई जा रही है।

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