नकली दवा कंपनियों को बचाने वाले ड्रग कंट्रोलर पर गिरी गाज

नकली दवा कंपनियों को बचाने वाले ड्रग कंट्रोलर पर गिरी गाज

तत्काल प्रभाव से निलंबित, आंकड़ों में हेरफेर कर नकली दवा माफिया को दी थी ढाल

जयपुर | राजस्थान में नकली दवाओं के खेल का पर्दाफाश होते ही बड़ा एक्शन सामने आया है। नकली दवाइयां बनाने वाली कंपनियों को बचाने और सरकारी आंकड़ों से छेड़छाड़ करने वाले ड्रग कंट्रोलर द्वितीय राजाराम शर्मा को सरकार ने तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त शासन सचिव निशा मीणा ने आदेश जारी करते हुए कहा कि इस तरह की गंभीर लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जा सकती। विभाग ने सहायक औषधि नियंत्रक मनोज धीर को अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया है।


कैसे हुआ खुलासा?

राजस्थान में नकली दवाओं का मामला लंबे समय से चिंता का विषय रहा है। ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट, 1940 के तहत साफ प्रावधान है कि किसी भी दवा में दर्शाए गए तत्वों में से एक भी न मिले तो वह दवा नकली मानी जाएगी। लेकिन इस बार मामला सिर्फ नकली दवा बनने का नहीं बल्कि उसे बचाने के लिए आंकड़ों से खेल करने का था।

राजाराम शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने नकली दवाओं से जुड़े सरकारी रिकॉर्ड में बदलाव कर उन्हें कम दिखाने की कोशिश की। अलग-अलग मंचों पर उन्होंने अलग-अलग आंकड़े पेश किए, जिससे कंपनियों को राहत मिल सके।


लोकसभा, नीति आयोग और विधानसभा में अलग-अलग आंकड़े

जांच में सामने आया कि –

  • लोकसभा को भेजा गया डेटा (मार्च 2025) : 55 दवाएं नकली बताई गईं।
  • नीति आयोग को भेजा गया डेटा (जून 2025) : 60 नकली दवाओं का दावा।
  • असल रिकॉर्ड (जनवरी 2022 से जून 2025 तक) : सिर्फ 39 नकली दवाएं।
  • विधानसभा के लिए तैयार डेटा : इस अवधि में आंकड़ा घटाकर 44 तक कर दिया गया।

यानी, एक ही मामले में तीन-तीन अलग आंकड़े सरकारी संस्थानों को दिए गए। यही नहीं, विधानसभा प्रश्न के उत्तर में गलत जानकारी भेजने की तैयारी भी चल रही थी।


नकली दवाओं की ‘नई परिभाषा’ गढ़ी गई

सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि राजाराम शर्मा ने कानून की स्पष्ट परिभाषा को दरकिनार कर नकली दवाओं को बचाने के लिए अपनी परिभाषा गढ़ दी।

उन्होंने फाइल पर टिप्पणी लिखी –
“यदि दवा में एक सॉल्ट को छोड़कर बाकी सभी घटक मौजूद हैं और निर्माता यह स्वीकार करता है कि दवा उसी ने बनाई है तो उसे नकली औषधि नहीं माना जाएगा।”

इस गलत व्याख्या का सीधा असर यह हुआ कि कई नकली दवाओं को “असली” घोषित कर दिया गया। विधानसभा में भी यही आंकड़े भेजे जाने थे।


19 सितंबर की बैठक में पकड़ा गया खेल

जब विधानसभा प्रश्नों के उत्तर को लेकर विभाग में 19 सितंबर को बैठक हुई तो इस हेरफेर का खुलासा हुआ। बैठक में मौजूद अधिकारियों ने पाया कि फाइल पर दी गई टिप्पणी पूरी तरह गलत और नियमों के खिलाफ है। इसके बाद जांच शुरू हुई और पूरा मामला उजागर हुआ।


विभाग और सरकार में हड़कंप

मामला सामने आते ही विभाग और सरकार दोनों में हड़कंप मच गया। स्वास्थ्य विभाग ने तुरंत कार्रवाई करते हुए निलंबन का आदेश जारी कर दिया। अधिकारियों का कहना है कि यह सिर्फ शुरुआत है, आने वाले समय में और गहरी जांच की जाएगी।

सरकार ने संकेत दिए हैं कि –

  • इस प्रकरण की विस्तृत विभागीय जांच होगी।
  • दोषी पाए जाने पर कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई तय है।
  • नकली दवा बनाने वाली कंपनियों की भूमिका भी जांच के दायरे में लाई जाएगी।

जनता का सवाल : जब अफसर ही बचाने लगें तो भरोसा किस पर?

जनता का मानना है कि दवाओं से जुड़ा कोई भी घोटाला सीधे जान और मौत से खेल है। नकली दवाएं किसी भी मरीज की जिंदगी छीन सकती हैं। ऐसे में अगर जिम्मेदार अफसर ही कंपनियों को बचाने के लिए आंकड़ों से छेड़छाड़ करें तो आम लोगों की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा?

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का भी कहना है कि इस मामले ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसे अफसरों पर कठोर कार्रवाई ही जनता का विश्वास बहाल कर सकती है।

नकली दवाओं से जुड़े इस घोटाले ने राजस्थान ही नहीं, पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। अफसर द्वारा गढ़ी गई गलत परिभाषा और आंकड़ों से छेड़छाड़ ने यह साबित कर दिया कि व्यवस्था में बैठे लोग भी कभी-कभी माफिया के हितों के लिए काम कर सकते हैं।

👉 सरकार का तुरंत एक्शन इस बात का संकेत है कि अब ऐसे मामलों को दबाया नहीं जाएगा।
👉 असली परीक्षा आगे की जांच होगी, जिसमें यह तय होगा कि नकली दवा कंपनियों और इस घोटाले से जुड़े अन्य नामों पर कब और कैसी कार्रवाई होती है।

 

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