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औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) की हाल ही में हुई बैठक में 53 नई दवाओं की खुदरा कीमतें तय कर दी गई हैं। ये कीमतें विभिन्न फार्मा कंपनियों के आवेदनों के आधार पर तय की गई हैं और इसमें बड़ी संख्या में मधुमेह तथा हृदय रोग से जुड़ी दवाएं शामिल हैं।
एनपीपीए द्वारा तय की गई कीमतों में सबसे अधिक चर्चा एम्पाग्लिफ्लोज़िन की रही, जो जर्मन दवा कंपनी बोह्रिंजर इंगेलहेम द्वारा पेटेंट की गई थी। इस दवा का पेटेंट 10 मार्च, 2025 को समाप्त होने वाला है, जिससे अन्य कंपनियों को इसे बाजार में उतारने का अवसर मिलेगा। ज़ाइडस हेल्थकेयर, एल्केम लेबोरेटरीज, मोरपेन, यूएसवी, कैडिला, एमक्योर, एबॉट और इंटास जैसी कंपनियों को एम्पाग्लिफ्लोज़िन और मेटफॉर्मिन के संयोजन वाली दवाओं की कीमतों की मंजूरी मिली है।
इसके अलावा, ज़ाइडस हेल्थकेयर, अजंता फार्मा, सिप्ला, ब्लू क्रॉस, एक्यूमेंटिस और प्राइमस रेमेडीज को डेपाग्लिफ्लोजिन, सिटाग्लिप्टिन, लिनाग्लिप्टिन, विल्डेग्लिप्टिन और टेनेलिग्लिप्टिन जैसी अन्य मधुमेह विरोधी दवाओं की कीमतों की भी मंजूरी दी गई है।
हाई ब्लड प्रेशर के इलाज में उपयोग होने वाली टेल्मिसर्टन और बिसोप्रोलोल फ्यूमरेट जैसी दवाओं के लिए भी कैडिला, टोरेंट, जर्मन रेमेडीज और वर्कसेल सॉल्यूशंस को कीमतों की स्वीकृति दी गई है।
अन्य अनुमोदित दवाओं में शामिल हैं:
एनपीपीए की यह अधिसूचना खासतौर पर मधुमेह के मरीजों के लिए राहत लेकर आई है, क्योंकि इससे दवाओं की कीमतों में स्थिरता बनी रहेगी और अधिक प्रतिस्पर्धा से दवाएं सस्ती हो सकती हैं। हालांकि, पेटेंट समाप्त होने के बाद जेनेरिक दवाओं की आमद से ब्रांडेड दवाओं के निर्माताओं के लिए चुनौती बढ़ सकती है।
इससे पहले, फरवरी में एनपीपीए ने 42 दवाओं की कीमतें तय की थीं, जिनमें कई मधुमेह और हृदय रोग की दवाएं शामिल थीं। इन नीतियों से मरीजों को सस्ती दवाएं मिल सकेंगी, लेकिन फार्मा कंपनियों के लिए यह संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इन मूल्य निर्धारण नीतियों से बाजार पर क्या प्रभाव पड़ता है – क्या यह मरीजों के लिए राहत साबित होगी, या उद्योग के लिए नई रणनीतियां बनाने का संकेत देगी?