छह माह के कोर्स के बाद होम्योपैथ डॉक्टर लिख सकेंगे एलोपैथिक दवाएं, IMA ने जताया विरोध

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 छह माह के कोर्स के बाद होम्योपैथ डॉक्टर लिख सकेंगे एलोपैथिक दवाएं, IMA ने जताया विरोध

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मुंबई,  महाराष्ट्र में होम्योपैथिक डॉक्टरों को अब छह महीने का एक विशेष कोर्स करने के बाद एलोपैथिक यानी आधुनिक चिकित्सा पद्धति की दवाएं लिखने की अनुमति दी गई है। महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल (MMC) द्वारा जारी 30 जून की अधिसूचना के मुताबिक, यह कोर्स सर्टिफिकेट इन मॉडर्न फार्माकोलॉजी (CCMP) के तहत कराया जाएगा।

राज्य चिकित्सा शिक्षा एवं औषधि विभाग द्वारा मंजूरी मिलने के बाद यह फैसला लिया गया है। अधिसूचना के अनुसार, जिन होम्योपैथ डॉक्टरों ने यह कोर्स पूरा किया है, वे अब एलोपैथिक दवाएं भी लिख सकेंगे। इसके लिए महाराष्ट्र मेडिकल एसोसिएशन (MMA) 15 जुलाई से एक ऑनलाइन पोर्टल शुरू कर रहा है, जहां CCMP योग्यता प्राप्त डॉक्टर पंजीकरण करा सकेंगे।


IMA का विरोध: “मरीजों की सुरक्षा से खिलवाड़”

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने इस फैसले को सख्त शब्दों में गलत बताया है। IMA के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. शिवकुमार उत्तुरे ने कहा,

“यह पूरी तरह अनुचित है और हम इसका कड़ा विरोध करते हैं। यह निर्णय न केवल मरीजों को भ्रमित करेगा, बल्कि आधुनिक चिकित्सा प्रणाली की साख को भी कमजोर करेगा।”

IMA ने बॉम्बे हाईकोर्ट में इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की है, जिस पर अस्थायी रोक भी लगी हुई है। संगठन का कहना है कि यह अधिसूचना MMC की वैधानिकता और नैतिकता को भी कमजोर करती है।


विवाद की जड़: 2014 का संशोधन

IMA का कहना है कि यह विवाद 2014 में हुए उस संशोधन से जुड़ा है, जिसमें महाराष्ट्र होम्योपैथिक प्रैक्टिशनर्स एक्ट और महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल एक्ट 1965 में बदलाव कर कुछ शर्तों के साथ होम्योपैथ डॉक्टरों को एलोपैथिक दवाएं लिखने की छूट दी गई थी। IMA ने इस संशोधन को भी अदालत में चुनौती दी है।

IMA का कहना है कि वह कोर्ट से अनुरोध करेगा कि वह इस मामले की सुनवाई में तेजी लाए। संगठन का तर्क है कि इस निर्णय से स्वास्थ्य व्यवस्था में गंभीर उलझन पैदा हो सकती है और यह मरीजों के स्वास्थ्य के साथ समझौता होगा।

जहां एक ओर राज्य सरकार और MMC इस कदम को ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की कमी से निपटने का उपाय मानते हैं, वहीं दूसरी ओर चिकित्सा विशेषज्ञ इसे एक खतरनाक मिश्रण करार दे रहे हैं, जिससे मरीजों की सुरक्षा और चिकित्सा गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है। मामला फिलहाल अदालत में विचाराधीन है

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