उत्तराखंड में 125 उद्योगों को बड़ा झटका, जुलाई महीने में खारिज हुए पर्यावरणीय (NOC)अनुमति के आवेदन
देहरादून | उत्तराखंड में जुलाई का महीना उद्योगों के लिए झटका साबित हुआ है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UKPCB) ने जुलाई 2025 के पहले 21 दिनों में 125 उद्योगों और संस्थानों के पर्यावरणीय अनुमति (CTE/CTO) के आवेदन खारिज कर दिए हैं। यह अनुमति NOC (No Objection Certificate) के रूप में दी जाती है, जो किसी भी नए उद्योग की स्थापना या संचालन से पहले अनिवार्य होती है।
इस बड़ी कार्रवाई से राज्य के लगभग हर ज़िले के उद्योग प्रभावित हुए हैं। लेकिन सबसे ज़्यादा असर उधमसिंह नगर, देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल, पिथौरागढ़, चंपावत और अल्मोड़ा जिलों में देखने को मिला है।
क्या होती है CTO और CTE अनुमति?
CTE (Consent to Establish) – उद्योग शुरू करने से पहले ली जाने वाली अनुमति।
CTO (Consent to Operate) – उद्योग चालू करने से पहले जरूरी संचालन अनुमति।
ये दोनों मंजूरियाँ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मिलती हैं और इनके बिना कोई भी उद्योग कानूनी रूप से काम नहीं कर सकता।
किन उद्योगों पर पड़ा असर?
जिन 125 संस्थानों के आवेदन खारिज हुए हैं, वे अलग-अलग क्षेत्रों से हैं। इनमें शामिल हैं:
चावल मिल और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ
फार्मास्युटिकल कंपनियाँ
प्लास्टिक उत्पाद निर्माता
केमिकल इंडस्ट्री
होटल और पर्यटन व्यवसाय से जुड़े संस्थान
बिजली उत्पादन इकाइयाँ (जैसे सोलर पावर)
कुछ प्रमुख संस्थानों के नाम भी सामने आए हैं, जैसे देहरादून की Sikka Infra Planet, हरिद्वार की Laxmi & Co, और उधमसिंह नगर की Universal Plastics, MAC Personal Care, Aryes Drugs आदि। वहीं पर्वतीय जिलों में कई होटलों और रिसॉर्ट्स के आवेदन भी खारिज हुए हैं, जैसे Hotel Opulence, Corbett Village Resort, Hotel Surya और Lakshita Print n Pack।
आवेदन खारिज क्यों हुए?
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने विभिन्न कारणों से ये आवेदन अस्वीकार किए। मुख्य कारण थे:
अधूरे या गलत दस्तावेज़
पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन
ग़लत स्थान पर उद्योग स्थापित करने की कोशिश
प्रदूषण रोकने के लिए ज़रूरी उपकरणों की कमी
पुराने संचालन के बावजूद अनुमति न लेना
बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि यह सख्ती राज्य के पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने के लिए जरूरी है। नियमों का पालन नहीं करने वाले किसी भी संस्थान को अनुमति नहीं दी जाएगी।
क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ?
पर्यावरण मामलों के जानकारों का कहना है कि यह कदम राज्य में सतत विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) की ओर बढ़ाया गया जरूरी कदम है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण और पर्यावरणीय क्षरण को रोकने के लिए ऐसी कार्रवाई समय-समय पर होनी चाहिए।
उद्योग संगठनों ने जरूर चिंता जताई है कि इससे छोटे और मध्यम वर्ग के व्यवसायों को नुकसान हो सकता है, लेकिन ज़्यादातर विशेषज्ञ इस कार्रवाई को उचित मानते हैं।
उत्तराखंड में जुलाई 2025 का महीना पर्यावरणीय मंजूरी के लिहाज से काफी अहम रहा। 125 आवेदन खारिज होने से यह साफ हो गया है कि राज्य सरकार पर्यावरण सुरक्षा को लेकर कोई समझौता नहीं करेगी। आने वाले समय में यह फैसला एक उदाहरण बनेगा कि उद्योग स्थापित करने से पहले पर्यावरणीय नियमों का पालन कितना ज़रूरी है।