दवाइयों पर सरकार का बड़ा एक्शन! अब मार्केटिंग कंपनियों को भी लेना होगा लाइसेंस — गुणवत्ता पर कसने वाला है कड़ा शिकंजा

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दवाइयों पर सरकार का बड़ा एक्शन! अब मार्केटिंग कंपनियों को भी लेना होगा लाइसेंस — गुणवत्ता पर कसने वाला है कड़ा शिकंजा

नई दिल्ली, देश की दवाइयों की गुणवत्ता पर लगी ढील अब खत्म होने वाली है। सरकार ने दवाओं की क्वालिटी और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर ली है। अब केवल दवा बनाने वाली कंपनियाँ ही नहीं, बल्कि दवा बेचने–विपणन करने वाली कंपनियाँ यानी मार्केटर्स भी सरकार की नजर में आएंगे।

यह फैसला केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ड्रग्स कंसल्टेटिव कमेटी (DCC) ने अपनी हाल की बैठक में लिया है। समिति ने साफ कहा है कि अब ऐसा सिस्टम बनाया जाना चाहिए जिसमें कोई भी दवा मार्केटर लाइसेंस के बिना एक भी दवा बाजार में बेच ही न सके।


अभी क्या समस्या है? क्यों लगा बड़ा झटका मार्केटर्स को?

बैठक में बताया गया कि देश में इस समय दवाओं के मार्केटर्स पर कोई सीधी निगरानी नहीं है।
कई कंपनियाँ मार्केटिंग का काम तो करती हैं, लेकिन:

  • उनका पूरा पता उपलब्ध नहीं
  • कंपनी का सही विवरण नहीं
  • कौन जिम्मेदार है, इसकी जानकारी नहीं
  • और कई बार ये कंपनियाँ सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज भी नहीं!

यानी दवा बाजार में किस ब्रांड के पीछे कौन कंपनी है—इसका पता तक नहीं चलता।
इसी वजह से कई नकली, घटिया या गलत तरीके से बनाई गई दवाओं के मामले सामने आए, लेकिन मार्केटर्स पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी।


क्या बदलेगा नया नियम लागू होने पर?

DCC की सिफारिश के अनुसार:

  • हर दवा मार्केटिंग कंपनी को लाइसेंस लेना अनिवार्य होगा।
  • यह लाइसेंस मिलने से पहले उन्हें कई कड़ी शर्तें पूरी करनी होंगी।
  • सिर्फ दवा का लेबल चिपकाकर बेचने वाली कंपनियाँ अब “अदृश्य खिलाड़ी” नहीं रहेंगी—सरकार की सीधी निगरानी में आएंगी।
  • दवा की गुणवत्ता और सुरक्षा में गड़बड़ी पाई गई तो मार्केटर भी जिम्मेदार माना जाएगा।

साधारण शब्दों में—
अब दवा बेचने–मार्केटिंग करने वालों की भी जिम्मेदारी तय होगी।


उद्योग की अंदरूनी सच्चाई क्या है?

  • देश में करीब 10,500 तकनीकी रूप से पंजीकृत दवा निर्माण इकाइयाँ हैं।
  • लेकिन मार्केटिंग करने वाली कंपनियाँ—जो दवाओं को देशभर में बेचती हैं—इनकी संख्या हजारों में है, और इनमें से कई का कोई रिकॉर्ड ही नहीं!
  • कई कंपनियाँ खुद दवा बनाती नहीं, बस आउटसोर्स करके अपना लेबल लगा देती हैं और बाजार में उतार देती हैं।
  • दवा खराब होने पर निर्माता पर तो कार्रवाई होती है, लेकिन मार्केटर बच निकलता है।

विशेषज्ञों का कहना है—
“जब दवा पूरे देश में पहुँचाने वाला मार्केटर है, तो उसकी जिम्मेदारी तय होना ही चाहिए।”


सरकार ने पहले भी चेताया था – लेकिन निगरानी का सिस्टम नहीं था

सरकार पहले ही कह चुकी है कि मार्केटिंग कंपनियाँ दवाओं के सही भंडारण (Storage Conditions) के लिए जिम्मेदार हैं।
लेकिन समस्या यह थी कि:

  • इन कंपनियों की गतिविधियों की मॉनिटरिंग
  • रिकॉर्ड की उपलब्धता
  • और जिम्मेदारी तय करने का कोई ठोस प्रावधान

कानून में मौजूद ही नहीं था।

अब प्रस्तावित संशोधन इस कमी को हमेशा के लिए खत्म कर देगा।


कुल मिलाकर—दवा मार्केटिंग में अब ‘‘जवाबदेही का दौर’’ शुरू!

यह कदम लागू हुआ तो दवाओं की दुनिया में बड़ा बदलाव आएगा।
जिन कंपनियों ने अब तक केवल लेबल चिपकाकर दवाइयाँ बेचने का कारोबार खड़ा किया है, उन पर भी कानूनी लगाम लगेगी।
और सबसे बड़ी बात—
आम जनता को मिलेंगी बेहतर, सुरक्षित और विश्वसनीय दवाइयाँ।


 

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