11 मासूमों की मौत के बाद तमिलनाडु सरकार ने कोल्ड्रिफ सिरप पर लगाई रोक

11 मासूमों की मौत के बाद तमिलनाडु सरकार ने कोल्ड्रिफ सिरप पर लगाई रोक

बच्चों की किडनी को नुकसान पहुंचाने वाले जहरीले रसायन की पुष्टि, कंपनी पर गिरी गाज

 नई दिल्ली।   देशभर में खौफ फैलाने वाली खांसी की दवा कोल्ड्रिफ सिरप को लेकर अब बड़ा कदम उठाया गया है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में 11 मासूमों की मौत के बाद तमिलनाडु सरकार ने पूरे राज्य में इस दवा की बिक्री और उपयोग पर तत्काल रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया है। यही नहीं, दवा दुकानों के थोक और खुदरा स्टॉक को भी फ्रीज करने का निर्देश दिया गया है।

11 मासूमों की जिंदगी लील गई खांसी की दवा

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के परासिया ब्लॉक में 9 बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि राजस्थान के भरतपुर और सीकर में एक-एक बच्चे ने दम तोड़ा। परिजनों का कहना है कि बच्चों ने सिरप पीने के बाद अचानक तबियत बिगड़नी शुरू कर दी। उल्टी-दस्त और पेशाब रुकने जैसी गंभीर लक्षण दिखाई दिए। कई बच्चों को बचाया नहीं जा सका। अस्पतालों में भर्ती बच्चे अभी भी मौत और जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं।

तमिलनाडु सरकार का सख्त एक्शन

बढ़ते मामले और मौतों के आंकड़े ने तमिलनाडु सरकार को भी चौकन्ना कर दिया। ड्रग्स कंट्रोल विभाग ने दवा बनाने वाली कंपनी श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स को तत्काल उत्पादन रोकने का आदेश दे दिया है। यह फैक्ट्री कांचीपुरम जिले में स्थित है।

ड्रग्स कंट्रोल और लाइसेंसिंग अथॉरिटी के उप निदेशक एस. गुरुभारती ने बताया कि जांच में दवा के बैच की गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरी। लैब टेस्ट रिपोर्ट में पाया गया कि सिरप में डायएथिलीन ग्लायकॉल (DEG) की मिलावट है। यह वही जहरीला रसायन है जिसने पहले भी देश और दुनिया में बच्चों की जान ली है। कंपनी को कारण बताओ नोटिस जारी कर लाइसेंस रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

खतरनाक मिलावट का खुलासा

जांच में सामने आया है कि कंपनी ने नॉन-फार्माकॉपिया ग्रेड प्रोपलीन ग्लाइकॉल का इस्तेमाल किया, जो बेहद घटिया क्वालिटी का था और उसमें डायएथिलीन ग्लायकॉल तथा एथिलीन ग्लायकॉल जैसे जहरीले तत्व मिले थे। ये दोनों ही तत्व किडनी को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाते हैं और ज्यादा मात्रा में जानलेवा साबित हो सकते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह दवा और राज्यों में सप्लाई हो जाती तो मौतों का आंकड़ा और बढ़ सकता था।

परिवारों का दर्द: “हमने दवा पर भरोसा किया और बच्चे खो दिए”

छिंदवाड़ा के एक पिता ने रोते हुए कहा – “हमने डॉक्टर की सलाह पर दवा दी थी। बच्चे को खांसी ज्यादा थी। लेकिन सिरप पीने के बाद उसकी हालत बिगड़ती चली गई। हमें नहीं पता था कि यह जहरीला साबित होगा। हमने अपना लाल खो दिया।”

भरतपुर की एक मां ने भी आंखों में आंसू लिए कहा – “सरकारी अस्पताल से दी गई दवा पर भरोसा किया था। लेकिन सिरप ने हमारे बच्चे को छीन लिया।”

केंद्र सरकार भी अलर्ट

मध्य प्रदेश सरकार ने तमिलनाडु से विस्तृत जांच रिपोर्ट मांगी थी, जो अब सामने आ चुकी है। रिपोर्ट में कंपनी की गंभीर लापरवाही की पुष्टि हुई है। इसके बाद केंद्र सरकार और भारतीय औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने भी मामले की निगरानी तेज कर दी है। देशभर की दवा दुकानों और अस्पतालों में कोल्ड्रिफ सिरप के सैंपलिंग और परीक्षण का आदेश दिया गया है।

विशेषज्ञों की राय

दवा विशेषज्ञों का कहना है कि डायएथिलीन ग्लायकॉल का असर सबसे पहले किडनी पर होता है। बच्चों में यह विष तेजी से फैलता है और किडनी फेल होने के साथ-साथ सांस लेने में तकलीफ और न्यूरोलॉजिकल डैमेज तक पहुंच जाता है। कई बार लक्षण देर से दिखाई देते हैं, जिससे डॉक्टरों के लिए भी बचाना मुश्किल हो जाता है।

दिल्ली के एम्स से जुड़े एक फार्माकोलॉजिस्ट ने कहा – “यह बेहद खतरनाक है। दवा बनाने वाली कंपनियों को प्रोपीलीन ग्लाइकॉल की शुद्धता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। घटिया क्वालिटी इस्तेमाल करना बच्चों की जान से खिलवाड़ है।”

 

तमिलनाडु सरकार की कार्रवाई के बाद अन्य राज्यों की दवा नियंत्रण इकाइयां भी सतर्क हो गई हैं। यह उम्मीद की जा रही है कि दोषी कंपनी के खिलाफ न केवल लाइसेंस रद्द होगा बल्कि आपराधिक मामला भी दर्ज किया जाएगा।

मौतों के सिलसिले ने एक बार फिर दवा निर्माण और मॉनिटरिंग सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या कंपनियां सिर्फ मुनाफे के लिए मानकों से समझौता कर रही हैं? क्या सरकारी एजेंसियां समय रहते ऐसी लापरवाही रोक पाने में सक्षम हैं?

 

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